मधेपुरा/बिहार: भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की अंगीभूत इकाई आरएम कॉलेज,सहरसा में हिन्दी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुमारी अपर्णा द्वारा अनुवादित पुस्तक "लहसन" का लोकार्पण किया गया।
शहर के एक होटल में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान शिक्षकों ने संयुक्त रूप से अनुवादित पुस्तक "लहसन" का लोकार्पण किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते आरएम कॉलेज के प्राचार्य प्रो. गुलरेज रौशन रहमान ने कहा कि कॉलेज की सबसे कम उम्र की डॉ. कुमारी अपर्णा ने कम समय में ही मैथिली भाषा में लिखित पुस्तक का हिंदी अनुवाद कर अपनी लेखन की क्षमता को दिखाया है। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ कॉलेज के लिए बल्कि संपूर्ण विश्वविद्यालय और कोशी मिथिलांचल के लिए गौरव की बात है। प्रो. रहमान ने शिक्षकों से अपनी रचनात्मकता को अनवरत जारी रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ वेतनभोगी शिक्षक बनकर नहीं रहना है बल्कि अपनी लेखनी से समाज को नई दिशा देने में अपनी भागीदारी निभानी है। प्राचार्य प्रो. रहमान ने कहा कि जगदीश प्रसाद मंडल द्वारा मैथिली में लिखित पुस्तक "लहसन" का अपर्णा द्वारा हिंदी में अनुवाद करना दूसरों के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में मजदूरों के पलायन के यथार्थ का चित्रण किया गया है। उन्होंने कहा कि स्त्री के आंचल में जो मातृत्व का भाव होता है वह हमें अपनी जिम्मेदारियों का बोध कराता है। अपनी रचनात्मकता बनाए रखने के लिए अपने अंदर के गुण को बाहर निकाल कर उसे कलमबद्ध करें। यह निरंतर करने से निखर आती है। रचनात्मकता ही लोगों को लंबे समय तक याद रहती है।
पुस्तक लोकार्पण समारोह का संचालन डॉ. शुभ्रा पांडे और डॉ. पिंकी कुमारी ने संयुक्त रूप से किया।
पुस्तक लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि पूर्णिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मनोज पराशर ने कहा कि मिथिलांचल और कोशी में जो ऊर्जा, उर्वरता रचनात्मकता है इससे यहां का साहित्य काफी समृद्ध होता है। उन्होंने मैथिली की पुस्तक लहसन का हिंदी में अनुवाद कर पाठकों के बीच उपलब्ध करने के लिए कुमारी अपर्णा को बधाई दी। उन्होंने कहा कि मैथिली से हिंदी में रूपांतरण यहां के हिंदी शिक्षकों का दायित्व है। इससे दोनों साहित्य और समृद्ध होगी। उन्होंने कहा कि अर्पणा की रचनाशीलता निशित रूप से साहित्य को आगे बढ़ने में सहयोग करेगा।
पुस्तक लोकार्पण समारोह में पूर्व प्रभारी प्रधानाचार्य प्रो. ललित नारायण मिश्र ने कहा कि कुमारी अपर्णा की अनुवादित पुस्तक हम सबों को प्रेरणा देगी। उन्होंने कहा कि पुस्तक में पलायन की पीड़ा को दिखाया गया है जो यहां की सच्चाई है। विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद मोहन जयसवाल ने कहा कि पुस्तक लेखन, अनुवाद, समीक्षा शिक्षक के जीवन का अभिन्न अंग होता है। हमें इस कार्य को तल्लीनता के साथ करते रहना चाहिए। जिससे छात्रों और समाज के बीच हमारी लोकप्रियता बढ़े। उन्होंने कहा कि अनुवाद की प्रक्रिया आसान काम नहीं होता है। पुस्तक के मूल भाव उसकी संवेदनाओं को कलमबद्ध करना कुशल शिक्षक ही कर सकते हैं।
इस मौके पर डॉ. अरुण कुमार झा, डॉ. उर्मिला अरोड़ा, डॉ. राजीव कुमार झा, डॉ कविता कुमारी, डॉ. अमिष कुमार, डॉ. प्रतिभा कपाही, डॉ. संजय कुमार, डॉ. संजय परमार, डॉ. मंसूर आलम, डॉ. रामानंद रमण, डॉ नागेन्द्र राय, डॉ सुरेश प्रियदर्शी, बबलू कुमार, हर्षिता, रेयांश रितिक, अभिजीत कुमार, उमेश मंडल, नंद किशोर सहित अन्य मौजूद रहे।।


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