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रविवार, 5 फ़रवरी 2023

मधेपुरा/बिहार:"संत रविदास मानव मुक्ति आंदोलन के प्रणेता थे - डॉ जवाहर पासवान"...

मधेपुरा/बिहार:  रविदासजी को पंजाब में रविदास कहा गया। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें 'रैदास' के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। 
कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था।
उक्त बातें राजकीय अंबेडकर कल्याण छात्रावास के सुपरिटेंडेंट सह केपी कॉलेज मुरलीगंज के प्रधानाचार्य सह बीएनएमयू के सीनेट-सिंडिकेट सदस्य डॉ जवाहर पासवान ने कही।
 उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि  रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ई. को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।
 
 उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक  मुस्लिम 'सदना पीर' उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उन पर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था, लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं बल्कि मानवता से मतलब था।
 संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि 'रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच' यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित किए गए है।
 संत शिरोमणि रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है। 
मौके पर  प्रखंड कल्याण पदाधिकारी मनोज कुमार, छात्र नायक नयन रंजन, प्रिया रंजन, आशीष कुमार, पवन कुमार, सुनील कुमार, ध्रुव कुमार, मंटू कुमार, देवराज कुमार, मनीष कुमार, जयस कुमार, अभिषेक कुमार, करण कुमार, विनोद कुमार, गौतम कुमार, सुमन कुमार भारती, आशीष कुमार, बाबुल कुमार आदि मौजूद रहे।।

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