हिन्दुस्तान आध्यात्म की भूमि है। सदियों से कई आध्यात्मिक गुरु, आम जनों को जीवन का सही मार्ग दिखाते आ रहे हैं। दुर्भाग्यवश, आधुनिक काल में उनमें से कई भिन्न-भिन्न विवादों जैसे यौन उत्पीड़न, हत्या और वित्तीय अनियमितताओं के कारण अखबारों की सुर्खियों में रहे।लेकिन कुछ चुनिंदा नाम है जिन्होंने आम जनों केस्वास्थ्य, कल्याण, अध्यात्म और उनकी बेहतरी कोधर्म के रूप में अपनाया है। 92 वर्षीयस्वामी नारायण दासऐसे ही आध्यात्मिक गुरु हैं जो निःस्वार्थ भाव से राजस्थान के लोगों के लिए काम कर रहे हैं। समाज में समरसता और अध्यात्म के विस्तार में उनके योगदान के लिए 2018 में उन्हें देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मानपद्मश्री से सम्मानित किया गया।
स्वामी नारायण का जन्म राजस्थान के एक छोटे से शहर शाहपुरा में हुआ था। उनके माता-पिता भगवान दास के अनुयायी थे। उन्होंने प्राथना की थी कि यदि उनका बच्चा जीवित रहता है तो वह ईश्वर की सेवा करेगा। जब स्वामी नारायण स्वस्थ रहे तो उनके माता-पिता ने अपना वचन निभाया और उन्हें पाँच वर्ष की नाज़ुक उम्र में ही आश्रम भेज दिया।बहुत ही कम उम्र से उन्होंने वेद और अन्य हिन्दू ग्रंथों को सीखना शुरु कर दिया। उन्होंने बहुत जल्द ही संस्कृत सीख कर प्रवचन देना भी प्रारंभ कर दिया। वे लोगों से वेद और ग्रंथों के ज्ञान बाँटा करते थे। इससे उनकी ख्याति बढ़ने लगी।स्वामी नारायण की कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई परंतु इस क्षेत्र में उनका योगदान आश्चर्यजनक है। पिछले कई वर्षों से उन्होंने हजारों की जिन्दगीं में शिक्षा के माध्यम से परिवर्तन लाया है। इसके लिए उन्होंने कई शिक्षण संस्थाएं स्थापित किया है।उन्होंने पाँच काॅलेजों की स्थापना की है और राजस्थान के दूरस्थ इलाकों के लगभग 25 स्कूलोंमें आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते हैं। उन्होंनेमहिलाओं के लिए भी दो काॅलेज भी खोले हैं।
1998 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने एक संस्कृत विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की। परंतु फंड की कमी के कारण 2002 तक इसकी स्थापना नहीं हो पायी।जब स्वामी नारायण को वित्तीय मजबूरी की जानकारी हुई तो उन्होंने स्वैच्छिक रुप से 50 करोड़ रुपये की राशि विश्वविद्यालय की स्थापनाके लिए उपलब्ध कराया और यह अनुरोध किया की उनके नाम को प्रदर्शित न किया जाए। तत्पश्चात विश्ववविद्यालय का नाम उनके गुरु जगतगुरु रामाचन्द्रया राजस्थान विश्वविद्यालय के नाम से जयपुर में खोला गया।स्वामी नारायण पूरे देश में फैले चटचट पंथ के प्रमुख हैं। अपने 80 वर्ष के शुरुआती दौर में उन्होंने कई सामाजिक कार्य किए। उनका मानना है कि लोगों के जीवन में आध्यात्मिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य के समग्र रुप से परिवर्तन लाना आध्यात्मिक मार्ग र्शकों की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए।“एक सबसे सर्वनिष्ठ दार्शनिक संदेश उन्होंने दिया है कि प्रकृति से प्यार करो। यह तुम्हें मानव से प्रेम करना सीखा देगा”, रामानंदी पंथ के अनुयायी स्वामी कौशलेन्द्रा ने यह बात बताया।उनके आश्रम में वेद स्कूल है जो उत्तरी क्षेत्रका सबसे आधुनिक वेद स्कूल है। संस्थान में वेदों के वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा है। शैक्षणिक संस्थानों के अलावा उन्होंने शाहपुरा में एक अस्पताल भी खोला है। इस अस्पताल का नाम उनके गुरु भगवान दास के नाम पर दिया गया है।
और यही नहीं, स्वामी नारायण गौ-रक्षा और गरीबों के भोजन के लिए भी काम कर रहे हैं। उनके धाम मेंतीन गौशालाएँ हैं जिनमें 1300 गाये हैं।उम्र के इस दौर में भी स्वामी नारायण दास का समाज के प्रति समर्पण और संकल्प सराहनीय है। वेरेगिस्तान में बारिश की बूंदों के समान हैं। हमऐसी कामना करते हैं कि उनके जैसे और भी लोग आगे आए और देश में शिक्षा के स्तर के उत्थान में योगदान करें।
स्वामी नारायण का जन्म राजस्थान के एक छोटे से शहर शाहपुरा में हुआ था। उनके माता-पिता भगवान दास के अनुयायी थे। उन्होंने प्राथना की थी कि यदि उनका बच्चा जीवित रहता है तो वह ईश्वर की सेवा करेगा। जब स्वामी नारायण स्वस्थ रहे तो उनके माता-पिता ने अपना वचन निभाया और उन्हें पाँच वर्ष की नाज़ुक उम्र में ही आश्रम भेज दिया।बहुत ही कम उम्र से उन्होंने वेद और अन्य हिन्दू ग्रंथों को सीखना शुरु कर दिया। उन्होंने बहुत जल्द ही संस्कृत सीख कर प्रवचन देना भी प्रारंभ कर दिया। वे लोगों से वेद और ग्रंथों के ज्ञान बाँटा करते थे। इससे उनकी ख्याति बढ़ने लगी।स्वामी नारायण की कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई परंतु इस क्षेत्र में उनका योगदान आश्चर्यजनक है। पिछले कई वर्षों से उन्होंने हजारों की जिन्दगीं में शिक्षा के माध्यम से परिवर्तन लाया है। इसके लिए उन्होंने कई शिक्षण संस्थाएं स्थापित किया है।उन्होंने पाँच काॅलेजों की स्थापना की है और राजस्थान के दूरस्थ इलाकों के लगभग 25 स्कूलोंमें आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते हैं। उन्होंनेमहिलाओं के लिए भी दो काॅलेज भी खोले हैं।
1998 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने एक संस्कृत विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की। परंतु फंड की कमी के कारण 2002 तक इसकी स्थापना नहीं हो पायी।जब स्वामी नारायण को वित्तीय मजबूरी की जानकारी हुई तो उन्होंने स्वैच्छिक रुप से 50 करोड़ रुपये की राशि विश्वविद्यालय की स्थापनाके लिए उपलब्ध कराया और यह अनुरोध किया की उनके नाम को प्रदर्शित न किया जाए। तत्पश्चात विश्ववविद्यालय का नाम उनके गुरु जगतगुरु रामाचन्द्रया राजस्थान विश्वविद्यालय के नाम से जयपुर में खोला गया।स्वामी नारायण पूरे देश में फैले चटचट पंथ के प्रमुख हैं। अपने 80 वर्ष के शुरुआती दौर में उन्होंने कई सामाजिक कार्य किए। उनका मानना है कि लोगों के जीवन में आध्यात्मिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य के समग्र रुप से परिवर्तन लाना आध्यात्मिक मार्ग र्शकों की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए।“एक सबसे सर्वनिष्ठ दार्शनिक संदेश उन्होंने दिया है कि प्रकृति से प्यार करो। यह तुम्हें मानव से प्रेम करना सीखा देगा”, रामानंदी पंथ के अनुयायी स्वामी कौशलेन्द्रा ने यह बात बताया।उनके आश्रम में वेद स्कूल है जो उत्तरी क्षेत्रका सबसे आधुनिक वेद स्कूल है। संस्थान में वेदों के वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा है। शैक्षणिक संस्थानों के अलावा उन्होंने शाहपुरा में एक अस्पताल भी खोला है। इस अस्पताल का नाम उनके गुरु भगवान दास के नाम पर दिया गया है।
और यही नहीं, स्वामी नारायण गौ-रक्षा और गरीबों के भोजन के लिए भी काम कर रहे हैं। उनके धाम मेंतीन गौशालाएँ हैं जिनमें 1300 गाये हैं।उम्र के इस दौर में भी स्वामी नारायण दास का समाज के प्रति समर्पण और संकल्प सराहनीय है। वेरेगिस्तान में बारिश की बूंदों के समान हैं। हमऐसी कामना करते हैं कि उनके जैसे और भी लोग आगे आए और देश में शिक्षा के स्तर के उत्थान में योगदान करें।