मधेपुरा: बिहार विधान सभा चुनाव-2025 को लेकर तमाम राजनैतिक पार्टियां जोर-शोर से तैयारियों में जुट गई हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी भी अपने खोए हुए जनाधार को दोबारा लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है।
इसके लिए राहुल गांधी ने पहले पूरे बिहार में वोटर अधिकार यात्रा की और देश की आजादी के बाद पहली बार राज्य में राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक सदाकत आश्रम, पटना में हुई।
बता दें कि राज्य की राजनीति में कांग्रेस का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी कि आजादी की कहानी। लेकिन साल 1990 के बाद से राज्य में कांग्रेस का आधार लगातार खिसकता चला गया। कभी पूर्ण बहुमत के साथ बिहार में एकछत्र राज्य करने वाली काँग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव में सिमटती चली गई। वर्तमान समय में राज्य में कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिहार में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से खड़ी हो पाएगी।
बिहार में कांग्रेस का सुनहरा दौरः
आजादी के बाद से लेकर साल 1990 के दशक तक कांग्रेस का बिहार की राजनीति पर दबदबा रहा है। वहीं साल 1952, 1962 और 1972 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। कांग्रेस पार्टी का मजबूत जनाधार दलित, सवर्ण और मुस्लिम समुदाय पर आधारित था। इस दौरान में कांग्रेस पार्टी ही बिहार की मुख्यधारा की राजनीति थी। पार्टी की केंद्रीय सोच यानी सर्व समाज की सियासत करने वाली पार्टी के रूप में पहचान रखती थी। लेकिन साल 1990 के विधानसभा चुनाव ने राज्य की राजनीति की दिशा ही बदल दी। वहीं कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक भी लालू यादव की तरफ चले गए। इसके बाद दलित और सवर्ण वोट भी कांग्रेस से छिटक गए।
जानकारों की मानें, तो यह वही दौर था, जब राज्य में कांग्रेस के पतन की शुरूआत हो गई थी।।


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