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बुधवार, 31 जुलाई 2024

BNMU:"सभी डिपार्टमेंट साल में एक राष्ट्रीय एवं एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन करें:कुलपति"...

मधेपुरा/बिहार: भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के शैक्षणिक परिसर स्थित साइंस ब्लॉक स्थित कॉन्फ्रेंस हॉल में  ड्रिलबिट सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड एवं बीएनएमयू  पीडीसी के सहयोग से एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का विधिवत उद्घाटन  कुलपति प्रो विमलेंदु शेखर झा ने दीप प्रज्वलित कर  किया।
   कुलपति  ने अपने अध्यक्षीय भाषण में  साहित्यिक चोरी को अपराध ही नहीं,बल्कि एक बड़ा पाप बताया। उन्होंने शोधार्थियों और शोध गाइड को ईमानदारी का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि साहित्यिक चोरी किसी दूसरे के काम या विचारों को अपने विचार के रूप में प्रस्तुत करना है, उनकी सहमति से या बिना उनकी सहमति के, बिना पूर्व स्वीकृति के अपने काम में शामिल करना, सभी प्रकाशित और अप्रकाशित सामग्री, चाहे पांडुलिपि, मुद्रित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो, साहित्यिक चोरी के अंतर्गत आती है।
 साहित्यिक चोरी जान-बूझकर या लापरवाही से या अनजाने में हो सकती है। परीक्षाओं के नियमों के तहत, जानबूझकर या लापरवाही से साहित्यिक चोरी एक अनुशासनात्मक अपराध है। दूसरों के काम या विचारों को स्वीकार करने की आवश्यकता केवल पाठ पर ही लागू नहीं होती, बल्कि अन्य मीडिया, जैसे कंप्यूटर कोड, चित्र, ग्राफ़ आदि पर भी लागू होती है। यह पुस्तकों और पत्रिकाओं से लिए गए प्रकाशित पाठ और डेटा तथा अप्रकाशित पाठ और डेटा पर समान रूप से लागू होती है। वेबसाइट से डाउनलोड किए गए पाठ, डेटा या अन्य संसाधनों का भी श्रेय दिया जाना चाहिए।साहित्यिक चोरी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कैरियर की शुरुआत से ही अच्छे अकादमिक अभ्यास के सिद्धांतों को सीखना और उनका इस्तेमाल करना। साहित्यिक चोरी से बचना सिर्फ़ यह सुनिश्चित करने का मामला नहीं है कि संदर्भ सभी सही हैं, या किसी स्रोत से कॉपी किए गए पर्याप्त शब्दों को बदलना है, बल्कि यह काम को जितना संभव हो उतना अच्छा बनाने के लिए अकादमिक कौशल/स्किल का उपयोग करने के बारे में है।यह जानना कि जानकारी कहां और कैसे एकत्रित और उपयोग की जाती है, बेहतर लेखन कौशल विकसित करना और अच्छे अकादमिक अभ्यास के नियमों को समझना, जैसे कि एक सुसंगत संदर्भ शैली का उपयोग करना, ये सभी अनजाने में होने वाली साहित्यिक चोरी को कम करेंगे।
उसी विषय क्षेत्र में अन्य शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और चिकित्सा चिकित्सकों के किसी भी आगामी कार्य को पढ़ना, परामर्श करना और चर्चा करना बेहद महत्वपूर्ण और आवश्यक है। इसलिए, यह शोध प्रक्रिया और शोध संचार का अभिन्न अंग है, कि इस संग्रह को किसी विशेष विषय क्षेत्र के सभी शोधकर्ताओं द्वारा स्वीकार और मान्यता दी जाए। अकादमिक अखंडता की अवधारणा पहले से तैयार किए गए विचारों और कार्यों और किसी भी बाद के काम को मान्यता देने के कार्य पर आधारित है।
किसी विषय की अच्छी समझ विकसित करने के लिए, तथा विचारों और अवधारणाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करने और उन्हें अपने काम में लागू करने में सक्षम होने के लिए, किसी को ऐसे शोध में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए जो विषय ज्ञान में योगदान देता हो। नकल करना एक निष्क्रिय गतिविधि है और इसलिए शोध को समझना निष्क्रिय नहीं हो सकता, खासकर जब जटिल विचारों को समझने की कोशिश की जा रही हो। यदि शोधकर्ता  अपने शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं  कि कोई प्रक्रिया कैसे काम करती है, किसी प्रयोग ने एक निश्चित परिणाम क्यों दिया, किसी शोधकर्ता ने अपने सिद्धांत को कैसे विकसित किया, तो इससे किसी और के शब्दों की नकल करने की तुलना में अधिक और गहरी समझ होगी।
अपने भाषण में उन्होंने यह भी बताया कि छात्र जानबूझकर साहित्यिक चोरी करते हैं। हालाँकि, वे अक्सर गलती से साहित्यिक चोरी कर लेते हैं क्योंकि उनके पास खराब शैक्षणिक कौशल होते हैं या वे अकादमिक लेखन अभ्यास के नियमों से परिचित नहीं होते हैं। इसमें समय प्रबंधन, शोध प्रश्न को समझना, पढ़ना और नोट लेना, लेखन कौशल, साथ ही साहित्यिक चोरी और उद्धरण के नियमों की समझ शामिल है। लेखन और शैक्षणिक कौशल में सहायता प्रदान करना आकस्मिक साहित्यिक चोरी को कम करने में बेहद फायदेमंद हो सकता है।
उन्होंने सभी विभागों को निर्देश देते हुए कहा कि साल में एक राष्ट्रीय एवं एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का  आयोजन अवश्य करें।
रिसोर्स पर्सन के रूप में पूर्व जूलॉजी हेड प्रो डॉ नरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि साहित्यिक चोरी बौद्धिक चोरी के कृत्य को संदर्भित करती है। सरल शब्दों में, स्रोत का उल्लेख या श्रेय दिए बिना किसी के विचारों और काम को कॉपी करना और अपने रूप में उपयोग करना साहित्यिक चोरी है। यदि आप किसी अन्य लेखक द्वारा किए गए काम का श्रेय ले रहे हैं, तो जान लें कि आपको नैतिक और कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ेगा। साहित्यिक चोरी के वास्तव में बहुत सारे प्रतिकूल प्रभाव हैं, लेकिन उनमें से कुछ को सूचीबद्ध करने से पहले, हम आपको यह बताना चाहेंगे कि आज साहित्यिक चोरी कई रूपों में मौजूद है। साहित्यिक चोरी कई अलग-अलग रूप ले सकती है। इसमें केवल नकल करना ही शामिल नहीं है, बल्कि बिना श्रेय के अनुवाद या लेखक का संदर्भ दिए बिना किसी और के विचारों का उपयोग भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि साहित्यिक चोरी और उसके परिणामों को रोकने का एकमात्र अचूक तरीका वेब पर सबसे अच्छे साहित्यिक चोरी जाँच उपकरण के साथ साहित्यिक चोरी परीक्षण करना है। वेब पर कई ऑनलाइन साहित्यिक चोरी जाँच उपकरण सूचीबद्ध हैं। यदि आप एक प्रभावी साहित्यिक चोरी जाँचकर्ता का उपयोग करना चाहते हैं जो आपको डुप्लिकेट सामग्री को खोजने और हटाने में मदद करेगा। साहित्यिक चोरी जाँचने वाले उपकरण बिना किसी प्रयास के आपके काम की मौलिकता को प्रमाणित करने में आपकी मदद कर सकते हैं। आपको उन्हें क्वेरी देनी होगी और 'साहित्यिक चोरी की जाँच करें' पर क्लिक करना होगा। आपको कुछ ही समय में विश्वसनीय परिणाम मिल जाएँगे। आप डुप्लिकेट सामग्री को हटाने या फिर से लिखने और अद्वितीय पोस्ट प्रकाशित करने के लिए परिणामों का उपयोग कर सकते हैं।
ड्रिलबिट सॉफ्टेक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के क्षेत्रीय प्रबंधक  अभ्यास सिंह ने ऑनलाइन ड्रिलबिट सॉफ्टवेयर की जानकारी दी एवम् शोध कार्यों को जांच करने के तरीकों को भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी।
 उपस्थित शिक्षकों एवम् शोधार्थियों ने प्रश्नों के द्वारा अपनी जिज्ञासा पूरी की। 
कार्यक्रम के शुरू में ही बीएनएमयू के पूर्व प्रोवीसी एवम् जयप्रकाश विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी प्रो डॉ फारुक अली शोधार्थियों को आशीर्वाद देने के लिए कैंपस में आए जिनका स्वागत  कुलपति प्रो डॉ विमलेंदु शेखर झा ने फूलों का गुलदस्ता भेंट कर किया, वह एक अंतरराष्ट्रीय मीट में शामिल होने के लिए दरभंगा यूनिवर्सिटी जा रहे थे। 
कार्यशाला में विज्ञान संकाय के डीन प्रो डॉ अरुण कुमार एवम् सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो डॉ अशोक कुमार ने भी साहित्यिक चोरी पर अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। 
नैक/आइक्यूएसी के निदेशक प्रो डॉ नरेश कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वागत भाषण एवं विषय प्रवेश कराया।
मंच संचालन होम साइंस विभाग की अस्सिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंका कुमारी ने की।
धन्यवाद् ज्ञापन एक दिवसीय कार्यशाला के संयोजक प्रो डॉ एमआई रहमान ने किया।
 शोधार्थियों की उपस्थिति बहुत अधिक संख्या में होने के कारणवश जूलॉजी विभाग, बॉटनी विभाग, केमिस्ट्री विभाग एवम् फिजिक्स विभाग के स्मार्ट क्लासरूम में भी व्यवस्था करनी पड़ी जहां शोधार्थियों को कार्यक्रम  का लाइव प्रसारण ऑनलाइन देखना पड़ा।
 संयोजक प्रो डॉ एम आई रहमान ने बताया कि आज के कार्यशाला में चार सौ के लगभग शोधार्थी ऑफलाइन और डेढ़ सौ के लगभग शोधार्थी राज्य के विभिन्न जिलों से ऑनलाइन सम्मिलित हुए।
मौके पर पूर्व जूलॉजी हेड डॉ अरुण कुमार, फिजिक्स हेड डॉ अशोक कुमार, इतिहास हेड डॉ सीपी सिंह, टीपी कॉलेज के दर्शन शास्त्र एचओडी डॉ सुधांशु शेखर, सोशियोलॉजी हेड डॉ राणा सुनील सिंह, डॉ अमरेन्द्र कुमार, डॉ विमला, डॉ भुवन भास्कर मिश्रा, डॉ पंचानंद मिश्रा,  रिसर्च स्कॉलर सारंग तनय, डॉ माधव कुमार, सौरभ कुमार चौहान, डॉ सौरभ कुमार, निखिल सिंह यादव, प्रकाश कुमार, यामिनी उज्ज्वल, राजेश कुमार, मन्नु कुमार, विवेकानंद कुमार, विकाश कुमार, शशांक कुमार, नरेश कुमार, नेहा कुमारी सहित सैकड़ों शोधार्थी, स्टूडेंट्स मौजूद रहे।।

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