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सोमवार, 27 जून 2022

BNMU कैम्पस: "सम्पूर्ण मानवता की धरोहर है योग: डॉ. जटाशंकर"...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: योग किसी जाति, धर्म या देश मात्र की संपत्ति नहीं है। यह संपूर्ण मानवता की धरोहर है और  संपूर्ण चराचर जगत के लिए इसकी महत्ता प्राचीन काल से आज तक निर्विवाद रूप से बरकरार है।
उक्त बातें दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कही।
वे रविवार को दर्शनशास्त्र विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा (बिहार) के तत्वावधान में आयोजित मानवता के लिए योग विषयक संवाद में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शिनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित स्टडी सर्किल योजना के तहत आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा कि  योग के आठ अंग या साधन हैं। इनमें यम, नियम, आसन, प्रणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि शामिल हैं। इन आठों का महत्व है। केवल आसन एवं प्राणायाम या ध्यान अथवा किसी भी अन्य साधन को ही योग  मानना उचित नहीं है। योग-मार्ग में सही मायने सफलता पाने के लिए आठो अंगों का क्रमशः पालन करना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि योग का लक्ष्य  शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य मात्र नहीं है। अन्य भारतीय  दर्शनों की तरह ही  योग का भी चरम  लक्ष्य कैवल्य या मोक्ष है। इसमें केवल अपनी मुक्ति नहीं, वरन् संपूर्ण  चराचर जगत की मुक्ति की बात शामिल है।
उन्होंने कहा कि  मानव मरणशील है, लेकिन मानवता नित्य है।सच्चा योगी केवल अपनी नहीं,  बल्कि  संपूर्ण मानवता की चिंता करता है। यहां मानवता का व्यापक अर्थ है, जिसमें मानवेतर प्राणी सहित चराचर जगत समाहित है।
*जीवन में योगाभ्यास को अपनाने की जरूरत*
इस अवसर पर मुख्य वक्ता    दर्शनशास्त्र विभाग, पटना  विश्वविद्यालय, पटना (बिहार) के  प्रो. (डॉ.) एन. पी. तिवारी ने कहा आज हमने आधुनिक जीवनशैली को अपना लिया है। इसके कारण आज हमारा 
तन-मन स्थिर नहीं है। अतः हमें जीवन में योगाभ्यास को अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि  योग केवल  व्यायाम या प्राणायाम नहीं है।इसका व्यापक अर्थ है। योग हमें सभी मनुष्यों तथा प्रकृति-पर्यावरण से जोड़ता है।
उन्होंने कहा उन्होंने कहा कि योग भारत की पहचान है। हजारों वर्ष पहले भारत ने योग के माध्यम से दुनिया को सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश दिया है। कोरोना काल में दुनिया ने इस संदेश की जरूरत को  महसूस किया और आज फिर से योग की महत्ता साबित हुई है। आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी योग के महत्व को स्वीकार कर रहा है।
पूर्व सांसद एवं  पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो. (डॉ.) रामजी सिंह ने कहा कि योग  कहा कि प्राचीन  काल से योग एवं आध्यात्म के कारण ही भारत का वैभव था और दुनिया के लोग भारत को विश्वगुरू मानते थे। लेकिन कालांतर में कुछ कारणों से हमारा यह वैभव कम हो गया। यदि हम पुनः योग एवं आध्यात्म के सैद्धांतिक रूप को व्यवहारिक धरातल पर उतारने का प्रयास करें, तो हम पुनः विश्वगुरू बन सकते हैं। अतः हमें योग को व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय  जीवन का अनिवार्य अंग बनाने की जरूरत है। 
उन्होंने कहा कि योग सिर्फ बूढ़े एवं बीमार लोगों के लिए नहीं है, बल्कि यह सबों के लिए है। अतः योग को मानव दिनचर्या का हिस्सा बनाने की जरूरत है। साथ ही अविलंब प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय  तक के सभी पाठ्यक्रमों में योग को अनिवार्य पत्र के रूप में शामिल करना अपरिहार्य है।
*वैश्विक स्तर पर बढ़ी है योग की महत्ता*
कार्यक्रम की अध्यक्षता  आइसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि भारत सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से वर्ष 2015 से वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरूआत हुई है। इस दिवस के लिए इस वर्ष का मुख्य विषय मानवता के लिए योग रखा गया है। यह वैश्विक स्तर पर योग की बढ़ती महत्ता एवं  स्वीकार्यता का प्रमाण है। 
इसके पूर्व अतिथियों का अंगवस्त्रम् से स्वागत किया गया। स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार और विषय प्रवेश दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन पूर्व कुलपति डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने किया। प्रांगण रंगमंच की स्वाति आनंद एवं  आदित्य आनंद ने देवी वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया। राष्ट्रगान जन-गन-मन के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के आयोजन में प्रांगण रंगमंच के अध्यक्ष डाॅ. संजय परमार एवं दिलखुश, शोधार्थी द्वय  सारंग तनय एवं सौरभ कुमार चौहान, गौरव कुमार सिंह, डेविड यादव, प्रणव कुमार प्रियदर्शी आदि ने सहयोग किया।
इस अवसर पर कैलाश परिहार,  अभिषेक कुमार, प्रिंस यादव, डॉ. कमल किशोर, सोना  राज, डॉ. सुनील सिंह, अंशु कुमार सिंह, डॉ. अरुण कुमार सिंह, शिवा पांडे, अवधेश प्रताप, अरुण कुमार, आरती झा, अशोक कुमार, छोटू कुमार, जूही कुमारी, नीरज कुमार, निधि मिश्रा, नीतू कुमारी, पल्लवी राय, राज कुमार नीतू कुमारी, लल्लू कुमार, गौतम, दीपा भारती, माधव कुमार, चंदन कुमार, प्रवीण कुमार, प्रवीण कुमार, सुशील कुमार, रागिनी सिन्हा, नयन रंजन आदि उपस्थित थे।
● होंगे कुल बारह कार्यक्रम:
आयोजन सचिव डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्किल के अंतर्गत कुल बारह कार्यक्रम  होना है। पहला आयोजन तीस अप्रैल को सांस्कृतिक स्वराज विषय पर, दूसरा आयोजन  तीस मई को गीता-दर्शन पर और तीसरा 26 जून को मानवता के लिए योग विषय पर संपन्न हुआ। आगे क्रमशः जुलाई 2022 से लेकर मार्च 2023 तक आठ कार्यक्रम होना है। 
● क्या है स्टडी सर्किल ?
 डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्कल (अध्ययन मंडल) लोगों का एक छोटा समूह होता है, जो नियमित रूप से विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आईसीपीआर ने स्टडी सर्किल योजना की शुरुआत की है और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इसे लागू किया गया है। बिहार में सर्वप्रथम पटना विश्वविद्यालय, पटना में स्टडी सर्किल की शुरुआत हुई थी और कुछ दिनों पूर्व भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में भी इसकी स्वीकृति दी गई है।।

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