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गुरुवार, 19 मई 2022

BNMU कैम्पस:" 30 दिवसीय उच्च स्तरीय राष्ट्रीय वर्कशॉप का कुलपति ने किया उद्धघाटन"...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: पांडुलिपियाँ मानव सभ्यता- संस्कृति की धरोहर हैं। इसमें हमारा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, साहित्य एवं दर्शन भरा पड़ा है। पांडुलिपियों का संरक्षण एवं संवर्धन समाज एवं राष्ट्र की समग्र समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।
उक्त बातें बीएनएमयू, मधेपुरा एवं टीएमबीयू, भागलपुर के पूर्व  कुलपति प्रो( डाॅ.)अवध किशोर राय ने कही। 
वे बुधवार को 'पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान' पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रहा है।
 उन्होंने ने बताया कि सभ्यता के प्रारंभ से ही मानव ने अपने सोच-विचार को विभिन्न रूपों में लिपिबद्ध करने की कोशिश की। भारत में भी हमारे पुर्वजों ने पांडुलिपियों में अपने अनुभवों को संरक्षित किया। आज राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने लगभग 34 हजार पांडुलिपियों का संरक्षण किया किया है।  
उन्होंने ने कहा कि यदि पुरानी पांडुलिपियों का संरक्षण नहीं होगा, तो हम अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूल जाएँगे और हम अपना अस्तित्व ही खो देंगे। 
उन्होंने कहा कि भारत में प्राकृतिक रूप से पांडुलिपियों का संरक्षण किया जाता रहा है। पांडुलिपि संरक्षण के हमारे पारंपरिक साधन आसानी से उपलब्ध, टिकाऊ एवं सस्ते होते हैं। इसमें नीम, हल्दी, चंदन, पुदिना, काला जीरा, करंच, लौंग, सिनुआर, आजवाइन, अश्वगंधा आदि का प्रयोग किया जाता है।  पांडुलिपियों को लाल कपङे में इसलिए बांधते हैं, क्योंकि यह एंटीबायोटिक का काम करता है। 
कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता  कुलपति प्रो. (डॉ.) आर. के. पी. रमण ने कहा कि भारत के पास दस मिलियन पांडुलिपियां हैं, जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है। भारत की यह विरासत अपनी भाषाई और लेखन विविधता में अद्वितीय है। इस विरासत को समझने के लिए अध्ययनकर्ताओं में लिपियों के संबंध में विशेषज्ञता आवश्यक है। 
उन्होंने कहा कि पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करके आप अपने समाज एवं राष्ट्र की विरासत के संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। साथ ही सम्मानजनक अर्थोपार्जन भी कर सकते हैं।
उन्होंने सभी प्रतिभागियों से अपील की कि आप सभी इस कार्यशाला में प्राप्त ज्ञान को अपने अकादमिक एवं  व्यवहारिक जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे। हम क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों एवं अन्य महापुरुषों की पांडुलिपियों का संरक्षण का प्रयास करें। 
विशिष्ट अतिथि कुलसचिव  प्रो. (डॉ.) मिहिर कुमार ठाकुर ने कहा कि हम अपनी जड़ों से जुड़कर ही आगे बढ़ सकते हैं। अतः हमें हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। हमें अपनी इतिहास एवं संस्कृति एवं विरासत को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
सम्मानित अतिथि एनएम के समन्वयक (कार्यशाला) डॉ. श्रीधर बारीक  ने कहा कि  पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान पांडुलिपि एवं लीपि का एक व्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक अध्ययन है। इसका मुख्य विषय कच्चे माल की तैयारी (कागज, भोजपत्र, ताल पत्र, स्याही, स्टाइलस) लिपि एवं वर्णमाला के विकास का अध्ययन, अनुवाद, व्याख्या, ग्रंथों का पुनर्निर्माण, पाण्डुलिपियों का परिरक्षण, संरक्षण एवं भंडारण, संग्रहालयों एवं अभिलेखागारों की डिजाइनिंग, भाषा विज्ञान, लिखित परंपराओं का ज्ञान, आलोचनात्मक संपादन पाठ एवं सूचीकरण आदि है।
उन्होंने कहा कि मधेपुरा में पांडुलिपि संरक्षण केंद्र की स्थापना की योजना है। यदि यहां से स्थानीय उपलब्ध हो जाएंगे तो यहां केंद्र खुल सकता है।
इसके पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न देकर सम्मान किया गया। शिक्षिका नेहा कुमारी ने कुलगीत एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
पंकज कुमार शर्मा ने तबला पर संगत किया। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार ने की। अतिथियों का स्वागत उप कुलसचिव (अकादमिक) डॉ. सुधांशु शेखर, संचालन पृथ्वीराज यदुवंशी और धन्यवाद ज्ञापन सिड्डु कुमार ने किया।
इस अवसर पर पूर्व प्रति कुलपति डॉ. राजीव कुमार मल्लिक, विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. नवीन कुमार, डॉ. ललन प्रसाद अद्री, डॉ. भावानंद झा, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. अबुल फजल, कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव, सीनेट रंजन कुमार, शोधार्थी सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, माधव कुमार, दिलीप कुमार दिल, राजहंस राज, इसा असलम, सोनु कुमार आदि उपस्थित थे।।
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि यह एक विशिष्ट कार्यशाला, जो बिहार में पहली बार आयोजित हो रही है। इसके लिए एनएमएम  द्वारा अनुदान प्राप्त हुआ है। कार्यशाला में अधिकतम तीस प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। इनका चयन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा। इसमें वैसे शिक्षक एवं शोधार्थी, जो संस्कृत, इतिहास, दर्शनशास्त्र, पुरातत्त्व, पाली, प्राकृत, हिंदी आदि में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हों और पूर्व में पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान से संबंधित इक्कीस दिवसीय कार्यशाला में भाग ले चुके हों। 
उन्होंने बताया कि कार्यशाला पूर्णत: निःशुल्क है। बाहर के प्रतिभागियों के लिए आवास एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था है। प्रतिभागियों को गमनागमन हेतु तृतीय श्रेणी का वातानुकूलित रेल या बस किराया दिया जाएगा।।

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