● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: साहित्य मात्र कल्पना नहीं है। यह हमारा सामाजिक इतिहास भी है। साहित्य में समाज निहित होता है।
उक्त बातें ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो.( डॉ.) वीणा ठाकुर ने कही।
वे शुक्रवार को "स्वतंत्रता संग्राम : मैथिली साहित्य-संस्कृति ओ दर्शन" विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन टीपी कॉलेज, मधेपुरा और साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
उन्होंने कहा कि साहित्य एवं समाज दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। यह बात मैथिली साहित्य एवं मैथिल समाज पर भी लागू होता है। मैथिली साहित्य सामान्य जन का साहित्य है। यह समाज से निकट रूप से संबंधित है।
उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य-संस्कृति एवं दर्शन ने स्वतंत्रता-संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम में मैथिली के साहित्यकार अन्य साहित्यिकारों से पीछे नहीं रहे हैं।
विषय प्रवर्तन करते हुए मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक अशोक कुमार झा 'अविचल' ने कहा कि मथुरा संस्कृति एवं दर्शन विदेह की अवधारणा से प्रेरित है, इसमें दास्तां के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। यही कारण है कि हमारे कुछ राजा एवं जिम्मेदारियां अंग्रेजों के साथ रहे हों। लेकिन हमारा संपूर्ण जनमानस संपूर्ण जनमानस अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहा है।
उन्होंने कहा कि मिथिला के साहित्यकारों ने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाई है। लक्ष्मीनाथ गोसाईं, रंगलाल दास, रामस्वरूप दास आदि के गीतों व भजनों में राष्ट्रीय चेतना का स्वर बखूबी सामने आया है। तलाक की लोक परंपरा उपन्यास एवं काव्य परंपरा राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रही है। छेदी झा द्विजवर, यदुनाथ झा यदुवर, राघवाचार्य, भवप्रीतानंद ओझा आदि की कविताओं ने 1919 से 1947 तक राष्ट्रीय आंदोलन को धार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बीज वक्तव्य देते हुए साहित्यकार डॉ. ललितेश मिश्र ने कहा कि मैथिली साहित्य में स्वतंत्रता संग्राम से संदर्भित साहित्य का अभाव नहीं है। लेकिन मैथिली इतिहास के लेखकों ने इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया और मैथिली साहित्यकारों के साथ न्याय नहीं किया। इतिहास की पुस्तकों में मैथिली साहित्य में उपस्थित स्वतंत्रता के स्वर को जैसा स्थान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला।
उन्होंने इस संदर्भ में विशेष रूप से 1911 में प्रकाशित मैथिली गीत कुसुम की चर्चा की और बताया कि यह स्वतंत्रता की चेतना के संदर्भ में असमी, तमिल एवं बंगला सहित किसी भी भारतीय भाषा के साहित्य के समकक्ष है। आधुनिक मैथिली साहित्य में राष्ट्रीय क्षेत्रों से ओतप्रोत जितनी रचनाएं हैं, उतनी अन्यत्र कहीं नहीं है।
स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के उपसचिव एन. सुरेश बाबू ने बताया कि यह आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में आयोजित किया जा रहा है। इसमें प्रस्तुत सभी आलेखों को पंद्रह अगस्त तक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
● राजनीतिक कारणों से हुई उपेक्षा:
इस अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश नारायण प्रसाद ने कहा कि प्राचीन काल में मिथिला एवं मैथिली सब दृष्टि से आगे रहा है। लेकिन बाद में राजनीतिक कारणों से इसकी उपेक्षा हुई है। हमारा सभी रत्न खो गया। हमें उन खोए रत्नों की खोज करनी है। हमें यह सोचना है कि हम
हम कौन थे क्या हैं और क्या होंगे अभी ?
सत्र संचालन उप कुलसचिव (अकादमिक) डॉ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मंगलाचरण (जय-जय भैरवी) के साथ हुई। अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं पाग से स्वागत किया गया। स्नेहा कुमारी, चंद्रा किरण रीना एवं डॉ. रश्मि कुमारी ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
● तकनीकी सत्र में हुई आलेखों की प्रस्तुति:
उद्घाटन समारोह के बाद प्रथम एवं द्वितीय तकनीकी सत्र में आलेखों की प्रस्तुति हुई। प्रथम तकनीकी सत्र में अध्यक्षा डॉ. वीणा ठाकुर ने "स्वतंत्रता संग्राम : मैथिली गीत-साहित्य" की चर्चा की। डॉ. संजय कुमार मिश्र ने "मिथिलाक समवेत दार्शनिक चिन्तन आ स्वतंत्रता आंदोलन" पर विचार व्यक्त किया। शिवकुमार मिश्र ने "स्वतंत्रता संग्रामक परिपेक्षमे मिथिलाक सांस्कृतिक आ बौद्धिक योगदान" विषयक आलेख प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि मिथिला महज एक भौगोलिक इकाई नहीं, वरन् एक सांस्कृतिक इकाई है।
● द्वितीय सत्र:
द्वितीय सत्र में अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार झा 'अविचल' ने "स्वतंत्रता संग्राम- मैथिली कथा साहित्य" विषय पर विचार व्यक्त किया। डॉ.के.पी.यादव ने "स्वतंत्रता संग्राममे मधेपुरा आ पूर्णियाक साहित्यिक, सांस्कृतिक आ बौद्धिक योगदान" और सदानंद यादव ने भारत छोड़ो आन्दोलन आ मैथिली साहित्य ओ समाज विषयक आलेख-पाठ किया।
इस अवसर पर सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अमोल राय, प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव, डॉ. पी. एन. पीयूष, डॉ. जवाहर पासवान, डॉ. अभय कुमार, कै. गौतम कुमार, ले. गुड्डू कुमार, कपिलदेव यादव, डॉ. जावेद अंसारी, डॉ. नरेन्द्र नाथ झा, डॉ. रविन्द्र कुमार चौधरी, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, डॉ अशोक कुमार, गोविंद कुमार, डॉ. सुमंत राव, डॉ मिथिलेश कुमार, मो. नदीम अहमद अंसारी, डॉ. अमिताभ कुमार, राजीव कुमार, विकास कुमार, सुधा कुमारी, ममता कुमारी, रानी, रेशमी कुमारी, सुप्रिया सुमन, अलका कुमारी, डॉ. स्वर्ण मणि, डॉ. रेणु कुमारी, डॉ. सुशांत कुमार, राज कुमार झा, डॉ. बलबीर कुमार झा आदि उपस्थित थे।
● दूसरे दिन होगा दो सत्र:
दूसरे दिन शनिवार को पू. दस बजे से तृतीय एवं अ. बारह बजे से चतुर्थ तकनीकी सत्र होगा। तृतीय सत्र में सत्राध्यक्ष ताराचंद वियोगी (स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिली सन्त साहित्य), अजीत मिश्र (स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिली काव्य साहित्य) एवं डॉ उपेंद्र प्रसाद यादव (स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिलीक उपन्यास) का आलेख पाठ होगा। चतुर्थ सत्र में सत्राध्यक्ष डॉ. रामनरेश सिंह (स्वतंत्रता संग्राम आ कोशी परिसर), डॉ. अमोल राय (मैथिली लोक साहित्य आ स्वतंत्रता संग्राम) एवं रवींद्र कुमार चौधरी (स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिली नाट्य साहित्य) अपने-अपने आलेख प्रस्तुत करेंगे।।
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