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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

BNMU: "शिक्षा ही वह धन है जो सम्पूर्ण संसार में व्यक्ति को सम्मान दिलाने में सक्षम में है"...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: सनातन धर्म के विभिन्न पक्षों और उनमें निहित प्रज्ञा को उजागर करने के लिए वर्ल्ड योग कम्यूनिटी न्यूयॉर्क द्वारा आयोजित 'ऑनलाइन ग्लोबल कान्फ्रेंस ऑन
हिन्दूइज्म' पर बीएनएमयू की प्रोवीसी डॉ आभा सिंह  ने अपना व्याख्यान दिया। एसोसिएशन ऑफ इंडियन फिलासफर इंटरनेशनल और शांथिगिरी रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से
आयोजित कॉन्फ्रेंस में प्रोवीसी प्रो. आभा सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा और उसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिन्दू ज्ञान परंपरा में विरोधियों के
मत को नकारा नहीं गया है बल्कि अपने मत की स्थापना से पहले विरोधियों के मत को पूर्व पक्ष के रूप में समुचित स्थान दिया गया है। प्रो. सिंह ने कहा कि
हिन्दू परंपरा एकवादी नहीं बल्कि बहुलवादी रही है। इसी कारण वैदिक परंपरा के साथ बौद्ध और जैन परंपरा का विकास बिना किसी रूकावट के हुआ।
उन्होंने कहा कि हिन्दू परंपरा में मौखिक शिक्षा प्रमुख रही लेकिन लिपि का विकास भी काफी हुआ। इसका प्रमाण है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के अशोक
शिलालेख में तीन लिपियों का पाया जाना। प्रोवीसी ने कहा कि हिन्दू ज्ञान परंपरा का चरम उत्कर्ष ही है कि वैदिक सूक्ति 'वसुधैव कुटूंबकम', 'सर्वे संतु सुखिन:' इत्यादि को
आज भी संपूर्ण जगत में सराहा जा रहा है। डॉ. आभा सिंह ने कहा कि हिन्दू परंपरा में विकसित पाणिनी का अष्टाध्यायी ग्रंथ व्याकरण की दृष्टि से सटीक है।
आज इस ग्रंथ का अध्ययन संसार के कंम्प्यूटर वैज्ञानिक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति और न्याय शास्त्र पर भी ऐसे ग्रंथों की रचना हुई है जो आज भी
समीचीन है। उन्होंन कहा कि गणित, खगोल शास्त्र, आयुर्विज्ञान, शल्य चिकित्सा, खनन, धातु विद्या केक्षेत्र में भी
प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का योगदान अतुलनीय रहा है।  हिन्दू परंपरा के विकास का चरमोत्कर्ष ही है कि हमारे पास 04 वेद, 06 अंग, 10 ग्रंथ, 14 विद्या, 64 कला और 18 शिल्प का विकास हुआ। भारतीय शिल्प विद्या आज
के व्यायसायिक पाठ्यक्रमों को मार्गदर्शन दे रहा है। प्रोवीसी ने संपूर्ण ज्ञान के विकास में गुरु शिष्य परंपरा की भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारतीय
परंपरा में शिक्षा ही वह धन है जो संपूर्ण संसार में व्यक्ति को सम्मान दिलाने में सक्षम है। 
कॉन्फ्रेंस में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान के पूर्व अध्यक्ष तथा वर्तमान में इंडियन फिलासफिकल कांफ्रेंस के अध्यक्ष प्रो. एसआर भट्ट, सचिव प्रो एस पन्नीर सिल्वम सहित भारतवर्ष-अमरीका केअन्य विद्वानों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।।

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