● सारंग तनय@मधेपुरा।
मधेपुरा/बिहार: कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए देशव्यापी लाॅकडाउन को तीन मई तक बढ़ा दिया गया है। इससे दिल्ली, कोटा आदि जगहों में रहकर पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स और विभिन्न शहरों में रोजगार के लिए गए लोग परेशान हैं और यहाँ उनके अभिभावकों एवं परिजनों की चिंताएँ लगातार बढ़ती चली जा रही हैं। इसी बीच यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पहले दिल्ली में फंसे मजदूरों और अब कोटा में फंसे स्टूडेंट्स को सुरक्षित वापस ला लिया है। ऐसे में बिहारी स्टूडेंट्स और प्रवासी मजदूरों को भी सुरक्षित वापस लाने की मांग उठने लगी हैं।
बीएनएमयू के सिंडीकेट -सीनेट सदस्य सह राजनीति विज्ञान विभाग, टी. पी. काॅलेज, मधेपुरा के एचओडी डाॅ. जवाहर पासवान ने कहा है कि स्टूडेंट्स ही किसी भी समाज एवं राष्ट्र के भविष्य होते हैं और प्रवासी मजदूरों के ऊपर राज्य की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। लेकिन दुख की बात है कि प्रत्येक वर्ष बिहार से बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स एवं मजदूर दूसरे राज्यों में शिक्षा एवं रोजगार के लिए पलायन करते हैं। तथाकथित सुशासन की सरकार इस पलायन को रोकने में पूरी तरफ विफल रही है। ऐसे में बिहार सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह दूसरे राज्यों में फंसे सभी बिहारी स्टूडेंट्स एवं मजदूरों को सुरक्षित वापस लाए। जब यूपी सरकार अपने मजदूरों एवं स्टूडेंट्स को वापस ला सकती है, तो बिहार सरकार को क्या परेशानी है !
उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि सरकार कोरोना महामारी के समय भी दोहरा मापदंड अपना रही है। एक तरफ सत्ताधारी दल के विधायक को उनके बेटा एवं बेटी को कोटा से वापस बिहार लाने की इजाजत दी गई, लेकिन आम लोगों के बच्चों को असुरक्षा के माहौल में छोड़ दिया गया।
मधेपुरा के वरिष्ठ नागरिक सह बीएनएमयू कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव ने कहा है कि बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसके कारण यहाँ से बड़ी संख्या में विद्यार्थी कोटा, दिल्ली आदि शहर जाकर पढ़ाई करते हैं। एकाएक लाॅकडाउन की घोषणा करने से हजारों विद्यार्थी दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं। उन लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वे वहाँ दहशत में हैं। उन्हें खाने-पीने की दिक्कत हो रही है और मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पर रहा है। यहाँ उनके अभिभावकों का नींद हराम हो गया है।।
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