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मंगलवार, 3 जुलाई 2018

"मुहब्बत का बाजार" प्रिया सिन्हा की बेहतरीन रचना..... आप भी पढ़ें.....

💝"मुहब्बत का बाजार"💝

मुहब्बत के बाजार में हर कोई,
अपना दिल बिछाएं बैठे हैं;
किसी का दिल जल्द बिक जाता,
तो कोई वर्षों लगाएं बैठे हैं !

मुहब्बत के बाजार में हर कोई,
अपना दिल बिछाएं बैठे हैं !

कोई तय करने में इसकी कीमत,
अपना कीमती वक्त गंवाएं बैठे हैं;
जो ना मिलता उसके पीछे भाग रहें,
जो है मिलता उसको ठुकराएं बैठे हैं !



मुहब्बत के बाजार में हर कोई,
अपना दिल बिछाएं बैठे हैं !

कर ली खरीदारी जिसने वक्त पर दिल की,
अपने जान पे वो दिल-ओ-जहां लुटाएं बैठे हैं;
पर जो ना बेच सका समय पर खुद का,
ना हीं खरीद सका किसी और का दिल,
होकर खामोश किसी कोने में तड़प के,
वो तो लगातार आँसू बहाएं बैठे हैं !

मुहब्बत के बाजार में हर कोई,
अपना दिल बिछाएं बैठे हैं !




प्रिया सिन्हा
साहित्य

[नोट:-चूंकि ये एक तुलनात्मक कविता है इसलिए यहाँ खरीद-फरोख्त शब्दों का प्रयोग करना जरूरी था!अर्थात दिल की खरीद-बिक्री से तात्पर्य किसी को अपना बना लेना और किसी का हो जाने से है!]


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