आदित्य भारद्वाज
मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत इंदिरा सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा देने की कोशिश की थी लेकिन 1968 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर ऐसा करना संभव नहीं था तो उसने 1981 में यूनिवर्सिटी के एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय की परिभाषा बदल दी, जिसमें कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मतलब मुसलमानों के द्वारा तैयार किया गया विश्वविद्यालय है।
मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत इंदिरा सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा देने की कोशिश की थी लेकिन 1968 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर ऐसा करना संभव नहीं था तो उसने 1981 में यूनिवर्सिटी के एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय की परिभाषा बदल दी, जिसमें कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मतलब मुसलमानों के द्वारा तैयार किया गया विश्वविद्यालय है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों को आरक्षण दिए जाने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद विभिन्न संगठन इसकी मांग कर रहे हैं। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष प्रो. राम शंकर कठेरिया ने कहा है कि यदि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आरक्षण नहीं लागू किया तो यूजीसी से मिलने वाला उसका अनुदान रोकने की सिफारिश की जाएगी। आखिर क्या कारण है कि आज तक इस विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति और जनजाति व पिछड़े वर्ग को आरक्षण का अधिकार नहीं मिला।
मुसलमानों का वोट लेने के लिए कांग्रेस बनी आरक्षण न देने का कारण
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर पुस्तक लिखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो. राजकुमार फलवारिया एवं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय आरक्षण नीति एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ में इस विषय को उठाया है। फलवारिया कहते हैं कि आजादी के बाद आज तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्ग को आरक्षण का अधिकार नहीं दिया गया है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? वह कहते हैं कि इसके लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। वह भी इंदिरा गांधी के समय की कांग्रेेस सरकार जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छ़़ात्रों से उसका अधिकार छीना।
एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शुरुआत 1920में बनारस हिंदू विश्विद्यालय की स्थापना के पांच वर्ष बाद हुई। तब भारत मेें ब्रिटिश राज था।1920 में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि यह विश्वविद्यालय सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालय रहेगा। इस हिसाब से आजादी के बाद जो संविधान के अनुसार जो आरक्षण सभी विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति और जनजाति के छ़ात्रों को मिला वह यहां भी मिलना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
संविधान सभा में भी एएमयू को माना गया केंद्रीय विश्वविद्यालय
संविधान सभा में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर सहित सभी ने इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्व का केंद्रीय विश्वविद्यालय ही स्वीकार किया तथा संविधान की संघीय सूची 1 में रखा गया।
मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने भी कहा अल्पसंख्यक विवि नहीं
1951 में मौलाना आजाद, 1965 में एम सी छागला और 1972 में नुरूल हसन जैसे मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने भी स्पष्ट कहा था कि यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है,लेकिन बावजूद इसके विश्वविद्यालय में अल्पसंख्यक जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण नहीं मिला।
सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय में (1968) में विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग पर सुनवाई हुई तो पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भी सर्वसम्माति से स्पष्ट निर्णय दिया कि यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्था नहीं है। इसलिए इसे अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
इंदिरा गांधी सरकार ने किया एएमयू एक्ट में संशोधन
आपातकाल के बाद इंदिरागांधी बुरी तरह चुनाव हार गईं। जनता पार्टी की सरकार बनी। इसके बाद जब 1981 में इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आई तो उन्हें सुझाव दिया गया कि आपके हारने का एक बहुत बड़ा कारण मुस्लिम वोटरों का आपके साथ न होना है। फलवारिया कहते हैं कि इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने मुसलमानों को खुश करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पंसख्यक दर्जा देने का प्रयास किया लेकिन 1968 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर ऐसा करना संभव नहीं था तो असंवैधानिक तरीके से यूनिवर्सिटी के एक्ट की परिभाषा में परिवर्तन कर कुछ संशोधन कर दिए गए। इसके तहत कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मतलब मुसलमानों के द्वारा तैयार किया गया विश्वविद्यालय है। तब से लेकर आज तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अनुसूचित जाति और जनजाति के छ़ात्रों को आरक्षण नहीं दिया गया है। जबकि संवैधानिक तौर पर यह बिल्कुल गलत है।
सौजन्य- पांचजन्य पत्रिका में आदित्य भारद्वाज की लेख
सौजन्य- पांचजन्य पत्रिका में आदित्य भारद्वाज की लेख
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