"हाँ मुझे तुमसे मुहब्बत है"
आज अभी हर-पल,हर-क्षण बस यही सोच रही हूँ मैं,
कि सबके सामने अपने प्यार का इजहार कर दूं;
चीख-चीख कर सब लोगों को बताऊं और खुद हीं,
सबके सामने अपने प्यार का इकरार कर लूं ।
हाँ,मुझे तुमसे मुहब्बत है !
लेकिन ये क्या तुम्हारे माथे पर ये पसीना, और चेहरे पर ये घबड़ाहट कैसी?
तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज व,
दिमाग में चल रही छटपटाहट कैसी ?
तुम्हारा तन शांत और मन में ये वीरानियाँ कैसी?
तुम्हारे सूखे होंठ आँखों में ये परेशानियाँ कैसी ?
ओह,ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है !
क्यों डर लग रहा है क्या तुम्हें कि-
कहीं मैं सबके सामने तुम्हारा नाम ना ले लूं?
हमारे तुम्हारे बीच जो ये लुका-छुपी का,
खेल है चल रहा कई वर्षों से,
कहीं मैं सबके सामने तुम्हें सरेआम ना कर दूं ?
अरे,ये कैसी बुजदिली वाली चाहत है ?
पर गौर से इतना तो जरूर हीं सुन लो तुम,
कि मुझसे जितना हीं दूर जाओगे तुम;
तुम्हारे उतना हीं पास चली आऊंगी मैं,
मुझसे जितना भी पीछा छुड़ाओगे तुम,
तुम्हारे उतना हीं पीछे पड़ जाऊंगी मैं !
आह,यही तो मेरी सच्ची इबादत है !
भले हीं तुमने ना की हो मुझसे मुहब्बत सच्चे दिल से;
पर मैंने तो की है ये कह रही हूँ मैं आज इस महफिल से;
अब तो तुम्हारा नाम लिए वगैर सबके समक्ष,
मैं जरा भी अब साँसे भर ना सकूंगी;
हाँ मुझे तुम्हारी जरूरत है ऐ मेरे "लक्ष्य",
बिन हासिल किए तुम्हें सच मैं तो चैन से मर ना सकूंगी !
हाँ,क्योंकि अब आई कयामत है !
"प्रिया सिन्हा"
साहित्यकार, कवयित्री
पूर्णियां (बिहार)
[ नोट :- यहाँ "लक्ष्य" का तात्पर्य किसी लड़के के नाम से नहीं बल्कि स्वयं के लक्ष्यों / सपनों / उद्देश्यों की प्राप्ति से है । ]
अर्थात ये प्रेम पंक्तियाँ स्वयं के लक्ष्यों को पाने व पूरा करने को समर्पित है ।
😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀
आज अभी हर-पल,हर-क्षण बस यही सोच रही हूँ मैं,
कि सबके सामने अपने प्यार का इजहार कर दूं;
चीख-चीख कर सब लोगों को बताऊं और खुद हीं,
सबके सामने अपने प्यार का इकरार कर लूं ।
हाँ,मुझे तुमसे मुहब्बत है !
लेकिन ये क्या तुम्हारे माथे पर ये पसीना, और चेहरे पर ये घबड़ाहट कैसी?
तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज व,
दिमाग में चल रही छटपटाहट कैसी ?
तुम्हारा तन शांत और मन में ये वीरानियाँ कैसी?
तुम्हारे सूखे होंठ आँखों में ये परेशानियाँ कैसी ?
ओह,ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है !
क्यों डर लग रहा है क्या तुम्हें कि-
कहीं मैं सबके सामने तुम्हारा नाम ना ले लूं?
हमारे तुम्हारे बीच जो ये लुका-छुपी का,
खेल है चल रहा कई वर्षों से,
कहीं मैं सबके सामने तुम्हें सरेआम ना कर दूं ?
अरे,ये कैसी बुजदिली वाली चाहत है ?
पर गौर से इतना तो जरूर हीं सुन लो तुम,
कि मुझसे जितना हीं दूर जाओगे तुम;
तुम्हारे उतना हीं पास चली आऊंगी मैं,
मुझसे जितना भी पीछा छुड़ाओगे तुम,
तुम्हारे उतना हीं पीछे पड़ जाऊंगी मैं !
आह,यही तो मेरी सच्ची इबादत है !
भले हीं तुमने ना की हो मुझसे मुहब्बत सच्चे दिल से;
पर मैंने तो की है ये कह रही हूँ मैं आज इस महफिल से;
अब तो तुम्हारा नाम लिए वगैर सबके समक्ष,
मैं जरा भी अब साँसे भर ना सकूंगी;
हाँ मुझे तुम्हारी जरूरत है ऐ मेरे "लक्ष्य",
बिन हासिल किए तुम्हें सच मैं तो चैन से मर ना सकूंगी !
हाँ,क्योंकि अब आई कयामत है !
"प्रिया सिन्हा"
साहित्यकार, कवयित्री
पूर्णियां (बिहार)
[ नोट :- यहाँ "लक्ष्य" का तात्पर्य किसी लड़के के नाम से नहीं बल्कि स्वयं के लक्ष्यों / सपनों / उद्देश्यों की प्राप्ति से है । ]
अर्थात ये प्रेम पंक्तियाँ स्वयं के लक्ष्यों को पाने व पूरा करने को समर्पित है ।
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