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गुरुवार, 3 मई 2018

"असर-ए-हादसा" सामाजिक विषयों पर बेटियों को लेकर प्रिया सिन्हा की बेहतरीन कविता आप भी पढ़ें.....

"असर-ए-हादसा"

"लब खामोश हो जाते हैं अक्सर उनके,
आँखें आँसुओं से लबालब भर जाती हैं;
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है ।

सींचा था जिस फूल को बड़े हीं प्यार से कभी,
कुछ बेरहमों की वजह से उनकी बगिया उजड़ जाती है;
हो जाती है वो पागल रहती है वो खोई-खोई सी,
वापिस लौट जब वो अपने सूने घर जाती है ।

दिल में दर्द और आँखों में लिए तूफान,
न्याय के लिए वो माँ रब के दर जाती है;
मिलता नहीं जब न्याय उन्हें उनसे तब,
वो बुरी तरह से टूट कर बिखर जाती है ।

याद कर-कर के उसकी मीठी बातों को,
वो माँ गमगीन हो बीमार भी पड़ जाती है;
मत पूछो आलम असर-ए-हादसा का दोस्तों,
वो माँ बिचारी तो जीते-जी हीं मर जाती है;





"प्रिया सिन्हा
साहित्यकार, पूर्णियां

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