"कौन हूँ मैं"
"मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया,
जैसे नील गगन में उड़ती,
इक आजाद मनचली सी चिड़ियाँ;
जैसे हँसने और हँसाने वाली,
इक बहुत ही प्यारी सी गुड़िया !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया ,
मैंने हर-हाल में सीखा है मुस्कुराना,
भुला कर अपनी सारी तकलीफ़ और मजबूरियाँ;
मैं तो दुखों में भी खुश रहती हूँ ऐसे,
जैसे खुश होती है कोई बच्ची
पाकर रंग-बिरंगी चूड़ियाँ !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया ,
कुछ एक लोगों ने कहा मेरे बारे में-
कि मैं तो हूँ इक जहर की पुड़ियां;
सच ही तो है जैसे जहर का काम होता है मारना,
ठीक वैसे मैं भी मारती हूँ नफ़रत को
मिटा के दो दिलों के बीच की दूरियाँ !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया !"
"नारी तुझे सलाम"
किसी के लिए तू है माँ;
किसी के लिए तू है प्रियतमा;
किसी के लिए तू है धरती,
किसी के लिए तू है आसमां !
कभी शोख तो कभी चंचल;
कभी कठोर तो कभी मखमल;
कभी ना अंधेरों से डर कर रूके तू,
सदा आगे बढ़ती रहती है तू अविचल !
तू ही दुर्गा तू ही काली;
तू ही सबको शक्ति देने वाली;
तू जो चाहे विनाश कर दे,
तू जो चाहे आए पल में खुशहाली !
तू सदा ही बनाए रखे अपने परिवार की गरिमा;
तू कार्य करे धैर्य से तो कभी दिखाकर अपनी भाव भंगिमा ;
तू तो ढ़ोए दो-दो कुलों की लाज को सदा ही,
नारी तुझे सलाम क्योंकि अद्भुत है तेरी ये महिमा !
"नारी एक रूप अनेक"
माँ होती है रूप माँ दुर्गा का,
जो अपने सभी बच्चों से करती है बहुत प्यार;
उनके बच्चों को जो कोई दुष्ट करे परेशान,
तो कर देती है पल में ही दुष्ट पापियों का संहार !
बहन होती है रूप माँ सरस्वती का,
जो होती है अपने प्यारे भाईयों की लाडली एवं शान,
वो होती है ज्ञानी इसलिए सदा ही करती है मार्गदर्शन,
देकर अपने सभी छोटे-बड़े भाईयों को ढ़ेर सारा ज्ञान !
बेटी होती है रूप माँ लक्ष्मी का,
होती है खूब सारी चंचलता उनके तो चाल में;
क्योंकि आधे से कम जीवन बीते उनका मायके में,
तो बाकी बचा बीत जाता है ससुराल में !
पत्नी होती है रूप माँ पार्वती का,
क्योंकि अपने पति की कहलाती है वो अद्धांगिनी,
और जीवन भर सुख-दुख में उनके संग साथ निभाती,
है बन कर अपने पति की जीवन संगिनी !
आज की नारी
आज की नारी कहती -
मुझे किसी के भी स्नेह भरी छाँव की जरूरत नहीं,
अब अकेले ही इस कड़ी धूप में पिघलने दो मुझे;
सब करीबी लोंगों का सानिध्य बहुत पा लिया,
इसलिए थोड़ा दर्द -ओ-ग़म में भी ढ़लने दो मुझे !
आज की नारी कहती है-
मेरे त्याग बलिदान व प्यार को किसी ने भी समझा नहीं;
हर किसी ने समझा कभी मुझे कमज़ोर तो ढ़ूढ़ा मुझमें लाख खाम़ियाँ भी कहीं;
ऐ खुदा ! भर दे इतनी खूबियों से तू मेरा दामन और,
बन कर एक कसक कमी सबके दिलों में खलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
सहारे की तलाश में जो मैं भटकते रही उम्र भर;
और इस वजह से बन गयी इक दिन मैं बोझ सब पर;
कृप्या कर के छोड़ दो मुझे अकेला अब और नहीं बनना मुझे किसी पे भी बोझ,
दो कदम ही सही पर खुद के दम पर तो अब चलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
कब तक दूसरों के सहारे आगे बढ़ूगी मैं ?
आख़िर कब तलक हर किसी पे बोझ बनी रहूंगी मैं ?
ऐ दोस्त ! थोड़ा भरोसा तो कर मेरे दृढ़ हौसले पे तू,
और अब खुद ही पल-पल गिरने संभलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
ऐ मुश्किलों ! मत कर हिम्मत मेरे मंजिलों को रोकने की तू,
क्योंकि मैं आँधी में जलते हुए उस दीये की तरह से हूँ ;
जो हर-पल, हर-दिन जिंदगी और मौत से जूझती रहती है,
तो ऐ हवा ! मुझे बुझाने की कोशिश मत कर अब इस तूफां में भी जलने दो मुझे !
"प्रिया सिन्हा"
पूर्णिया (बिहार)
"मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया,
जैसे नील गगन में उड़ती,
इक आजाद मनचली सी चिड़ियाँ;
जैसे हँसने और हँसाने वाली,
इक बहुत ही प्यारी सी गुड़िया !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया ,
मैंने हर-हाल में सीखा है मुस्कुराना,
भुला कर अपनी सारी तकलीफ़ और मजबूरियाँ;
मैं तो दुखों में भी खुश रहती हूँ ऐसे,
जैसे खुश होती है कोई बच्ची
पाकर रंग-बिरंगी चूड़ियाँ !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया ,
कुछ एक लोगों ने कहा मेरे बारे में-
कि मैं तो हूँ इक जहर की पुड़ियां;
सच ही तो है जैसे जहर का काम होता है मारना,
ठीक वैसे मैं भी मारती हूँ नफ़रत को
मिटा के दो दिलों के बीच की दूरियाँ !
मैं हूँ पिंकू, मैं हूँ प्रिया !"
"नारी तुझे सलाम"
किसी के लिए तू है माँ;
किसी के लिए तू है प्रियतमा;
किसी के लिए तू है धरती,
किसी के लिए तू है आसमां !
कभी शोख तो कभी चंचल;
कभी कठोर तो कभी मखमल;
कभी ना अंधेरों से डर कर रूके तू,
सदा आगे बढ़ती रहती है तू अविचल !
तू ही दुर्गा तू ही काली;
तू ही सबको शक्ति देने वाली;
तू जो चाहे विनाश कर दे,
तू जो चाहे आए पल में खुशहाली !
तू सदा ही बनाए रखे अपने परिवार की गरिमा;
तू कार्य करे धैर्य से तो कभी दिखाकर अपनी भाव भंगिमा ;
तू तो ढ़ोए दो-दो कुलों की लाज को सदा ही,
नारी तुझे सलाम क्योंकि अद्भुत है तेरी ये महिमा !
"नारी एक रूप अनेक"
माँ होती है रूप माँ दुर्गा का,
जो अपने सभी बच्चों से करती है बहुत प्यार;
उनके बच्चों को जो कोई दुष्ट करे परेशान,
तो कर देती है पल में ही दुष्ट पापियों का संहार !
बहन होती है रूप माँ सरस्वती का,
जो होती है अपने प्यारे भाईयों की लाडली एवं शान,
वो होती है ज्ञानी इसलिए सदा ही करती है मार्गदर्शन,
देकर अपने सभी छोटे-बड़े भाईयों को ढ़ेर सारा ज्ञान !
बेटी होती है रूप माँ लक्ष्मी का,
होती है खूब सारी चंचलता उनके तो चाल में;
क्योंकि आधे से कम जीवन बीते उनका मायके में,
तो बाकी बचा बीत जाता है ससुराल में !
पत्नी होती है रूप माँ पार्वती का,
क्योंकि अपने पति की कहलाती है वो अद्धांगिनी,
और जीवन भर सुख-दुख में उनके संग साथ निभाती,
है बन कर अपने पति की जीवन संगिनी !
आज की नारी
आज की नारी कहती -
मुझे किसी के भी स्नेह भरी छाँव की जरूरत नहीं,
अब अकेले ही इस कड़ी धूप में पिघलने दो मुझे;
सब करीबी लोंगों का सानिध्य बहुत पा लिया,
इसलिए थोड़ा दर्द -ओ-ग़म में भी ढ़लने दो मुझे !
आज की नारी कहती है-
मेरे त्याग बलिदान व प्यार को किसी ने भी समझा नहीं;
हर किसी ने समझा कभी मुझे कमज़ोर तो ढ़ूढ़ा मुझमें लाख खाम़ियाँ भी कहीं;
ऐ खुदा ! भर दे इतनी खूबियों से तू मेरा दामन और,
बन कर एक कसक कमी सबके दिलों में खलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
सहारे की तलाश में जो मैं भटकते रही उम्र भर;
और इस वजह से बन गयी इक दिन मैं बोझ सब पर;
कृप्या कर के छोड़ दो मुझे अकेला अब और नहीं बनना मुझे किसी पे भी बोझ,
दो कदम ही सही पर खुद के दम पर तो अब चलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
कब तक दूसरों के सहारे आगे बढ़ूगी मैं ?
आख़िर कब तलक हर किसी पे बोझ बनी रहूंगी मैं ?
ऐ दोस्त ! थोड़ा भरोसा तो कर मेरे दृढ़ हौसले पे तू,
और अब खुद ही पल-पल गिरने संभलने दो मुझे ।
आज की नारी कहती है-
ऐ मुश्किलों ! मत कर हिम्मत मेरे मंजिलों को रोकने की तू,
क्योंकि मैं आँधी में जलते हुए उस दीये की तरह से हूँ ;
जो हर-पल, हर-दिन जिंदगी और मौत से जूझती रहती है,
तो ऐ हवा ! मुझे बुझाने की कोशिश मत कर अब इस तूफां में भी जलने दो मुझे !
"प्रिया सिन्हा"
पूर्णिया (बिहार)