संपादक: आर.के.झा- मधेपुरा जिले के विभिन्न प्रखंडों में काली पूजा को लेकर तैयारी जोर शोर से चल रही है. काली पूजा के मौके पर भव्य मेले का आयोजन किया गया है. मेले की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जबकि काली पूजा पंडालों को भव्य रूप से सजाया गया हैं. विभिन्न जगहों पर काली मेला के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा. उधर, गम्हरिया के ईटवा जिवछपुर में मां काली युवा संघ काली चौक जीवछपुर की और से काली पूजा के अवसर पर तीन दिवसीय मेला का आयोजन किया गया है. वहीं काली मंदिर को सजाने में किसी प्रकार की चुक नहीं हो इसके लिए कमेटी के सदस्य पूरे दिन मुस्तैदी के साथ जुटे हुए है. मेला की तैयारी जोर शोर से की जा रही है. मंदिर को सजाने के लिए बाहर से कारिगरों को बुलवाया गया है.
हर वर्ष दीवाली के मौके पर काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है. लक्ष्मी पूजा के दिन प्राण प्रतिष्टा एवं वैदिक मंत्रों उचारण के साथ पूजा शुरू की जायेगी. मेला समिति के अध्यक्ष प्रभात कुमार प्रभाकर, सचिव राजकिशोर कुमार, कुंदन, ललटू, पप्पू, सतीश, अखिलेश, संजीव रंजन, अखिलेंद्र, रूपेश, राजकुमार, संजीव, सुभाष, सोनू, राजीव, पप्पू, रोशन, नीतीश, फुलेंद्र, सुरेश भारती एवं भोला पांडे ने संयुक्त रूप से कहा कि मेला के पहले दिन 20 अक्टूबर को नाटक का मंचन किया जायेगा. वहीं 21 अक्टूबर को कार्यक्रम में लोक संस्कृति की झलक दिखेगी. मेला के अंतिम दिन 22 अक्टूबर को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान म्यूजिकल ग्रुप के फिल्मी कलाकारों का धमाल होगा. इधर, बुधवार से मेला परिसर में महिला परिधानों सहित खिलौने की दुकानें सजने लगी हैं. काली मेला के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रशासन ने सजग है. विभिन्न पूजा पंडालों में दंडाधिकारी व पुलिस पदाधिकारी के अलावा सशस्त्र बलों को प्रतिनियुक्त किया गया है. दूसरी तरफ सदर प्रखंड अंतर्गत सुखासन काली स्थान में मां काली पूजा भक्ति भाव के साथ की जाती है. कहते जो सच्चे मन से मां की अराधना करते है, मां उनकी फरियाद सुन झोली भरते है. यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पूराना है. यहां पर दूर - दूर से लोग मन्नतें मांगने के लिए पहुंचते है. वहीं बलि प्रदान करने की वर्षो पुरानी प्रथा है. जिससे देखने के लिए लोगों की काफी भीड़ लगी रहती है. इस अवसर पर दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं मंदिर के बारे में बताते हुए पंचायत के मुखिया कमलेश्वरी प्रसाद सिंह बताते हैं मां काली की स्थापना स्थानीय लोगों के द्वारा की गयी. यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है. उन्होंने कहा कि यहां मेला लगाने को लेकर मंदिर का निर्माण किया गया था. क्योंकि आस पास के दस पंचायतों में मेला का आयोजन नहीं होता था. धीरे - धीरे यहां पर मेला लगना प्रारंभ हुआ और काफी मशहुर हो गया. हर साल दीपावली के दिन माता का जन्म होता है. उसके अगले दिन से मेला लगाया जाता है. जिससे दूर दूर से दुकानदार यहां पर दुकान सजाते है. मेला में मिनी सर्कस, मौत का कुंआ, जादूगर, मनिहारा दुकान, बुगी बुकी डांस समेत विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.
हर वर्ष दीवाली के मौके पर काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है. लक्ष्मी पूजा के दिन प्राण प्रतिष्टा एवं वैदिक मंत्रों उचारण के साथ पूजा शुरू की जायेगी. मेला समिति के अध्यक्ष प्रभात कुमार प्रभाकर, सचिव राजकिशोर कुमार, कुंदन, ललटू, पप्पू, सतीश, अखिलेश, संजीव रंजन, अखिलेंद्र, रूपेश, राजकुमार, संजीव, सुभाष, सोनू, राजीव, पप्पू, रोशन, नीतीश, फुलेंद्र, सुरेश भारती एवं भोला पांडे ने संयुक्त रूप से कहा कि मेला के पहले दिन 20 अक्टूबर को नाटक का मंचन किया जायेगा. वहीं 21 अक्टूबर को कार्यक्रम में लोक संस्कृति की झलक दिखेगी. मेला के अंतिम दिन 22 अक्टूबर को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान म्यूजिकल ग्रुप के फिल्मी कलाकारों का धमाल होगा. इधर, बुधवार से मेला परिसर में महिला परिधानों सहित खिलौने की दुकानें सजने लगी हैं. काली मेला के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रशासन ने सजग है. विभिन्न पूजा पंडालों में दंडाधिकारी व पुलिस पदाधिकारी के अलावा सशस्त्र बलों को प्रतिनियुक्त किया गया है. दूसरी तरफ सदर प्रखंड अंतर्गत सुखासन काली स्थान में मां काली पूजा भक्ति भाव के साथ की जाती है. कहते जो सच्चे मन से मां की अराधना करते है, मां उनकी फरियाद सुन झोली भरते है. यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पूराना है. यहां पर दूर - दूर से लोग मन्नतें मांगने के लिए पहुंचते है. वहीं बलि प्रदान करने की वर्षो पुरानी प्रथा है. जिससे देखने के लिए लोगों की काफी भीड़ लगी रहती है. इस अवसर पर दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं मंदिर के बारे में बताते हुए पंचायत के मुखिया कमलेश्वरी प्रसाद सिंह बताते हैं मां काली की स्थापना स्थानीय लोगों के द्वारा की गयी. यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है. उन्होंने कहा कि यहां मेला लगाने को लेकर मंदिर का निर्माण किया गया था. क्योंकि आस पास के दस पंचायतों में मेला का आयोजन नहीं होता था. धीरे - धीरे यहां पर मेला लगना प्रारंभ हुआ और काफी मशहुर हो गया. हर साल दीपावली के दिन माता का जन्म होता है. उसके अगले दिन से मेला लगाया जाता है. जिससे दूर दूर से दुकानदार यहां पर दुकान सजाते है. मेला में मिनी सर्कस, मौत का कुंआ, जादूगर, मनिहारा दुकान, बुगी बुकी डांस समेत विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.