● Dr. Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय ने 131 अतिथि शिक्षकों(गेस्ट टीचर) की संविदा सेवा अवधि को सशर्त 11 महीने के लिए विस्तार/नवीनीकरण दे दिया है।
इनमें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, वाणिज्य एवं मानविकी संकाय के गेस्ट टीचर शामिल है।
नवनियुक्त कुलसचिव डॉ अशोक कुमार ठाकुर ने कुलपति प्रो बीएस झा के आदेश से इसकी अधिसूचना 26 जून 2025 को जारी कर दी है।
यह विस्तार एक जुलाई 2025 से अगले 11 महीने की अवधि अर्थात 30 मई 2026 तक प्रभावी रहेगी।
यह निर्णय चयन समिति की अनुशंसा और सिंडिकेट के अनुमोदन की प्रत्याशा में कुलपति के निर्देश पर लिया गया है। कुलसचिव डॉ अशोक कुमार ठाकुर द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार चयनित शिक्षकों को 01 जुलाई 2025 से सात दिनों के भीतर संबंधित कालेजों के प्राचार्य, प्रभारी प्राचार्य या पीजी विभागाध्यक्ष के समक्ष योगदान करना है।
अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि यह नियुक्ति पूर्णतः अस्थायी है। विश्वविद्यालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी भी स्तर पर यदि कोई विसंगति पाई जाती है, या उम्मीदवार के विरुद्ध आपराधिक आरोप सिद्ध होता है अथवा अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित रहती है तो नियुक्ति को तुरंत प्रभाव से निरस्त कर दिया जाएगा।
● योग्यता मानदंडों को भी पूरा करना होगा जरूरी:
अतिथि शिक्षकों को राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत दर पर पारिश्रमिक का भुगतान किया जाएगा, जो कि इस मद में बिहार सरकार से अनुदान प्राप्त होने पर निर्भर करेगा। इसके अतिरिक्त सभी नियुक्त उम्मीदवारों को यूजीसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मानदंडों को भी पूरा करना अनिवार्य होगा।
विश्वविद्यालय ने यह भी कहा है कि यदि किसी शिक्षक का प्रदर्शन असंतोषजनक पाया जाता है, तो उसे सात दिनों के नोटिस पर सेवा से मुक्त किया जा सकता है। साथ ही संबंधित प्राचार्य एवं पीजी विभागाध्यक्ष को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि सभी अतिथि शिक्षक नियुक्ति की शर्तों का पालन करें।
● जो पीएच.डी. नहीं हैं,उनके भी नाम में लगा दिया डॉक्टर:
गेस्ट टीचरों के सेवा नवीनीकरण/विस्तार से संबंधित जो अधिसूचना/सूची जारी की गई है, उसमें कुछ तथ्यात्मक त्रुटियाँ पाई गई हैं। विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि कई ऐसे गेस्ट टीचर जो वास्तव में पीएच.डी. धारक नहीं हैं, उनके नाम के आगे 'डॉ.' (Dr.) उपाधि का उल्लेख किया गया है।
यह त्रुटि न केवल संबंधित दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, बल्कि वास्तविक पीएच.डी. धारकों के प्रति एक प्रकार की अन्यायपूर्ण स्थिति भी उत्पन्न करती है। 'डॉ.' उपाधि का प्रयोग केवल उन शिक्षकों के नाम के साथ किया जाना चाहिए, जिन्होंने विधिवत रूप से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की हो।।
सोर्स: दैनिक भास्कर डिजिटल।
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