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शनिवार, 17 मई 2025

BNMU:"डॉ. सुधांशु शेखर बने एनएसएस के विश्वविद्यालय समन्वयक"...

मधेपुरा/बिहार: बीएनएमयू की अंगीभूत टीपी कॉलेज, मधेपुरा के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में  सीनियर अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर को विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) का कार्यक्रम समन्वयक नियुक्त किया गया है।
 इस बावत कुलपति प्रो. विमलेन्दु शेखर झा के आदेशानुसार कुलसचिव प्रो. विपिन कुमार राय ने अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना के अनुसार इनकी नियुक्ति प्रावधानानुरूप गठित चयन समिति की अनुशंसा के आलोक में विहित अवधि (तीन वर्ष) अथवा अगले आदेश, जो पहले हो के लिए की गई है।
● जून 2017 से हैं असिस्टेंट प्रोफेसर:
मालूम हो कि डॉ.सुधांशु शेखर का बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी), पटना के माध्यम से बीएनएमयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित हुए हैं और यहाँ इन्होंने सर्वप्रथम 3 जून, 2017 को टीपी कॉलेज, मधेपुरा में योगदान दिया था। इसके कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन कुलपति प्रो.एके राय ने उन्हें 13 अगस्त, 2017 को पीआरओ की जिम्मेदारी दी। इस भूमिका में इन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। खासकर विश्वविद्यालय की सकारात्मक छवि बनाने और स्टूडेंट्स तक ससमय सूचनाएं पहुंचाने में इनका योगदान अविस्मरणीय है।
● उपकुलसचिव (अकादमिक) भी रह चुके हैं:
आगे जुलाई 2020 में तत्कालीन प्रभारी कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने डॉ. शेखर को पीआरओ के अतिरिक्त उपकुलसचिव (अकादमिक) की भी जिम्मेदारी दी। इन्होंने इस भूमिका को भी बखूबी निभाया और तत्कालीन निदेशक (अकादमिक) प्रो. एम. आई. रहमान के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक उन्नयन के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए।
● उपकुलसचिव (स्थापना) के रूप में बनाई नई पहचान:
सितंबर 2021 में तत्कालीन कुलपति प्रो.आर.के.पी.रमण ने कतिपय कारणों से डॉ. शेखर को पीआरओ एवं उपकुलसचिव (अकादमिक) के दायित्वों से मुक्त कर उपकुलसचिव (स्थापना) का नया दायित्व प्रदान किया। यह कार्य इनके लिए बिल्कुल नया और चुनौतीपूर्ण था। लेकिन यहाँ भी इन्होंने अपनी सूझबूझ एवं मेहनत के बल पर अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है।
● शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में है महती भूमिका:
डॉ. शेखर ने बीएनएमयू में शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभाई है। इनके द्वारा विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग और टीपी कॉलेज, मधेपुरा में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है। इसमें 5-7 मार्च 2021 में दर्शन परिषद्, बिहार का 42वां राष्ट्रीय अधिवेशन सर्वप्रमुख है, जिसका विषय "शिक्षा, समाज एवं संस्कृति" था। इसके साथ ही इन्होंने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम) एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सेमिनार (राष्ट्रवाद : कल, आज और कल) का भी सफलतापूर्वक आयोजन किया। इनको कई बड़े-बडे़ विद्वानों को मधेपुरा लाने का भी श्रेय जाता है। इन्होंने कई बड़े-बड़े विद्वानों को मधेपुरा बुलाकर उनका व्याख्यान कराया। इनमें पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो. (डाॅ.) रामजी सिंह, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो.( डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा, अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो.( डाॅ.) जटाशंकर आदि प्रमुख हैं। इन्होंने कोरोना काल में  बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल एवं फेसबुक के माध्यम से ग्यारह सेमिनारों और दर्जनों व्याख्यानों का आयोजन कराया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के विद्वानों के अलावा लंदन, दक्षिण अफ्रीका एवं नेपाल के विद्वानों का भी व्याख्यान हुआ।
● भागलपुर से की है पढ़ाई:
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि डॉ. शेखर का जन्म इनके नानी गांव पड़ोसी जिले खगड़िया में हुआ है।‌ वहीं से इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तदपरांत अपने गृह जिला बांका के एसएससपीएस महाविद्यालय, शंभूगंज से इंटरमीडिएट परीक्षा पास की। तदुपरांत इन्होंने प्रतिष्ठित टी. एन. बी. महाविद्यालय, भागलपुर से स्नातक प्रतिष्ठा (दर्शनशास्त्र) और भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर से स्नातकोत्तर एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। 
● शोध के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान:
डॉ.सुधांशु ने छात्र-जीवन से ही शोध के क्षेत्र में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इनके पीएचडी टापिक 'वर्ण-था और सामाजिक न्याय : डॉ. अंबेडकर के विशेष संदर्भ में' को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली से जूनियर रिसर्च फेलशिप मिली थी। इन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), नई दिल्ली के प्रोजेक्ट फेलो एवं पोस्ट डॉक्टोरल फेलो के रूप में भी कार्य किया है।
● संपादन एवं लेखन में भी है विशिष्ट पहचान:
डॉ. शेखर ने संपादन एवं लेखन की दुनिया में भी एक विशिष्ट स्थान बनाया है। इनकी अब तक चार स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें सामाजिक न्याय : आंबेडकर विचार और आधुनिक संदर्भ (2014), गांधी विमर्श (2015), भूमंडलीकरण और मानवाधिकार (2017) एवं गांधी-अंबेडकर और मानवाधिकार (2024) हैं। इन्होंने ‘भूमंडलीकरण : नीति और नियति’, ‘लोकतंत्र : नीति और नियति’, ‘भूमंडलीकरण और पर्यावरण’, 'शिक्षा-दर्शन', 'गांधी-चिंतन' आदि आधे दर्जन पुस्तकों का संपादन भी किया है। इनके दो दर्जन से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हैं तथा एक दर्जन रेडियो वार्ताओं का भी प्रसारण हो चुका हैं। साथ ही वे शोध-पत्रिका ‘दर्शना’ एवं ‘सफाली’ जर्नल ऑफ सोशल रिसर्च का संपादन भी करते रहे हैं।  
● विभिन्न संगठनों में सक्रिय:
डॉ. शेखर छात्र जीवन से ही विभिन्न शैक्षणिक संगठनों में सक्रिय रहे हैं। संप्रति ये दर्शन परिषद् , बिहार के प्रदेश संयुक्त सचिव एवं मीडिया प्रभारी हैं और अखिल भारतीय दर्शन परिषद्  के सहसचिव भी हैं। इन्हें अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा . विजयश्री स्मृति युवा पुरस्कार एवं श्रीमती कमलादेवी जैन स्मृति सर्वेश्रेष्ठ आलेख पुरस्कार सहित कई पुरस्कार प्राप्त हैं।।

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