मधेपुरा/बिहार: किसी भी विश्वविद्यालय के इतिहास में यह गौरव का क्षण होता है जब उसके किसी शिक्षक की 25वीं पुस्तक का विमोचन महामहिम कुलाधिपति के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न कराया जाए, लेकिन पता नहीं क्यों बीएनएमयू इस मामले में उदासीन रवैया अख्तियार किये हुए है, जो दुख के साथ ही आश्चर्य का भी विषय है।
उपर्युक्त संदर्भ में यहां यह उल्लेखनीय है कि बीएनएमयू मधेपुरा में पंचम दीक्षांत समारोह आयोजन हेतु महामहिम कुलाधिपति द्वारा 18 अगस्त 2023 की तिथि निर्धारित की जा चुकी है,तथा विश्वविद्यालय द्वारा पूर्व की भाँति इस निमित्त तैयारी भी चल रही है।
इस आयोजन के मौके पर प्रो डॉ राजकुमार सिंह जो वर्तमान में डीएसडब्लू हैं एवं पूर्व में विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग के एचओडी, सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन भी रह चुके हैं।
उनकी 25वीं पुस्तक "पॉलिटिकल कमबैक ऑफ हिन्दुस् इन चेंज्ड इंडिया" के विमोचन का आग्रह कुलपति से पहली बार 24 जून 2023 को किया गया तथा विश्वविद्यालय से कोई स्पंदन/प्रतिक्रिया नहीं होने के कारण इस में एक स्मार पत्र देकर 5 जुलाई 2023 को अनुरोध की पुनरावृत्ति की गई।
पुनः समय कम रहने के कारण उपर्युक्त दोनों आवेदनों की प्रति संलग्न कर इस हेतु याचना डॉ राजकुमार सिंह द्वारा 5 जुलाई 2023 को कुलाधिपति सचिवालय, राजभवन पटना को भेजा गया जिसकी प्रति कुलपति एवं कुलसचिव को भी अग्रसारित की गई। इसके जबाब में 11 जुलाई 2023 को डॉ राजकुमार सिंह के पास 2:04 बजे अपराह्न प्रधान सचिव का एक ईमेल आया तथा उनसे मोबाइल नंबर मांगा गया। मोबाइल नंबर भेजने के करीब आधे घंटे बाद राजभवन सचिवालय से एक फोन +92612-2786101 से आया जो संभवत: ओएसडी का है, और यह कहा गया कि आपका यह विमोचन संबंधी परमिशन विश्वविद्यालय से ही मिल जायेगा तथा वहीं संपर्क करें।
कुलाधिपति कार्यालय से दुरभाष पर मिले निर्देश के आलोक में डॉ राजकुमार सिंह द्वारा पुनः एक आवेदन कुलपति को 12 जुलाई 2023 को दिया गया, जिस पर विश्वविद्यालय द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया। विमोचन हेतु समय कम रहने के कारण लेखक/डॉ सिंह द्वारा पुनः एक स्मार पत्र कुलपति कार्यालय को 25 जुलाई 2023 को दिया गया,जिसमें यह भी आग्रह किया गया कि यदि अनुमति प्रदान करने में कठिनाई है तो विमोचन नहीं हो सकेगा, इसी आशय का पत्र निर्गत करें,ताकि पुनः कुलाधिपति कार्यालय एवं उच्चत अधिकारियों को सूचना प्रेषित की जा सके।
आवेदक/डॉ सिंह के आग्रह पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किसी प्रकार का कोई संज्ञान नहीं लेना विधि सम्मत तो नहीं है, प्राकृतिक न्याय(नेचुरल जस्टिस) का सिद्धांत भी इसकी अनुमति नहीं देता।।
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