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बुधवार, 1 जून 2022

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BNMU कैम्पस:"गीता में है जीवन जीने की कला,स्टडी सर्किल के तहत हुआ गीता-दर्शन पर ऑनलाइन संवाद"...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: श्रीमदभावद्गीता मात्र एक धर्म-ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-ग्रंथ भी है। इसमें श्रीकृष्ण ने हमें जो संदेश दिया है, वह सार्वदेशिक एवं सर्वकालिक है। उन संदेशों पर चलकर हम देश-दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। वास्तव में गीता अंधकार से घिरे आधुनिक मनुष्य के लिए  अस्र प्रकाशपूंज की तरह  है।
उक्त बातें दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कही।
वे मंगलवार को दर्शनशास्त्र विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा (बिहार) के तत्वावधान में आयोजित गीता-दर्शन विषयक संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शिनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित स्टडी सर्किल योजना के तहत आयोजित किया गया।
जीवन के सभी आयामों से जुड़ा है गीता-दर्शन*
उन्होंने कहा कि भगवद्गीता का दर्शन जीवन एवं जगत के सभी आयामों से जुड़ा है। हम इसका जितना अध्ययन एवं मनन करेंगे, हमें इसके गूढा़र्थों का उतना ही ज्ञान मिल सकेगा। इसका गीता का प्रत्येक श्लोक (मंत्र) जीवन में उतारने लायक है। 
उन्होंने कहा कि गीता में हर स्तर पर अद्भुत समन्वयवाद है। सामान्यत: एक-दूसरे के विरूद्ध दिखाई पड़ने वाले सिद्धांत भी गीता में समन्वित हो गए हैं। यह एक अद्भुत लोकतांत्रिक एवं समाजवादी ग्रंथ है।
उन्होंने कहा कि कृष्ण का संदेश है कि हमारा अधिकार कर्म करने में ही है, उसके फलों में नहीं है। हम न तो कर्म में अशक्त हों और न ही अकर्मण्य बनें। हम निष्किमभाव से कर्म करें अर्थात् फल की चिंता किए बगैर लोक-कल्याणार्थ स्वधर्म का पालन करना श्रेयस्कर है।  
उन्होंने कहा कि कर्म संन्यास और कर्मयोग दोनों ही मुक्ति देने वाले हैं, परंतु कर्म संन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। कर्मफल में आसक्ति को त्यागकर कर्मों को ईश्वर में समर्पित करके कार्य करना श्रेयस्कर है। कर्म करते हुए भी कर्मफलों को त्यागते हुए स्थितप्रज्ञ का जीवन जीया जा सकता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राजबोध फाउंडेशन
लंदन (इंग्लैंड) के निदेशक निदेशक माधव तुर्मेला ने कहा कि गीता में जीवन जीने की कला बताई गई है। इससे  हम तनाव-प्रबंधन, जीवन-प्रबंधन आदि की सीख ले सकते हैं। वास्तव में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के बहाने संपूर्ण मानवता को संदेश दिया है।
उन्होंने बताया कि अर्जुन को युद्ध में अवसाद हुआ कि अपने सम्बन्धियों को देखकर कि इन लोग को मारकर के मैं क्या जीऊँ? अर्जुन ने सोचा कि जो मेरे गुरु हैं, भाई हैं और सगे-संबंधी हैं की हत्या करके जीवन का आनंद लेने की अपेक्षा, संन्यास ही बेहतर है। श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन का संशय दूर किया और उसे कर्म में प्रवृत्त कराया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आइसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि भगवद्गीता एक सार्वभौमिक ग्रंथ है। इसे सभी जाति, धर्म एवं देव के लोगों के द्वारा पढ़ी जानी चाहिए। हम इसका जितना ही अधिक अध्ययन एवं मनन करेते हैं, हमें इसका उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है।
 
आशीर्वचन देते हुए पूर्व सांसद, पूर्व कुलपति एवं गाँधी विचार विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के संस्थापक अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. (डॉ.) रामजी सिंह ने कहा कि गीता एक संपूर्ण शास्त्र है और इसमें संपूर्ण मानव जाति के ज्ञान-विज्ञान का सार निहित है। यदि दुनिया की सभी पुस्तकें नष्ट हो जाएंगी और केवल गीता ही बची रहेगी, तो भी हम मानव सभ्यता को बचा सकेंगे।  
अतिथियों का स्वागत दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्षा सह दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा  प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने की। प्रांगण रंगमंच की मधुबाला भारती ने गणेश वंदना, स्वागत गीत एवं कृष्ण भक्ति गीत प्रस्तुत किया। प्रश्नोत्तर सत्र में कई लोगों ने प्रश्न भी पुछे।
कार्यक्रम के आयोजन में संजय परमार, गौरव कुमार सिंह, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, राजहंस राज, रंजन यादव, माधव कुमार, सुपेन्द्र कुमार सुमन, रौशन कुमार, डेविड यादव, नयन रंजन आदि ने सहयोग किया।
इस अवसर पर पूर्व कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी, स्वामी भावात्मानंद महाराज, डॉ. सुधा जैन, डॉ. सुधा सिन्हा, डॉ. श्याम देव सिन्हा, डॉ. अविनाश श्रीवास्तव, डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव, डॉ. आलोक टंडन, नोजिरुल इस्लाम,  डॉ. सुनील सिंह, जुही राज, डॉ. अली अहमद, डॉ. अनिता गुप्ता, अवधेश प्रसाद, अवनीत कुमार, भवेश कुमार, चंदन कर्ण, राजीव रंजन, आई एस कुमार,  कल्पना सिंह, ललित कुमार,  महर्षि  दिव्य श्री, ओम शिव रितेश झा, पूजा सिंह, प्रभाकर पांडे, प्रवीण कुमार यादव,  राणा रन विजय सिंह, रोहन कुंवर, रूपम कुमारी, सरिता कुमारी,  विनता झा, स्वाति राय, शिव कुमार,  दुर्गेश कुमार तिवारी, नंद किशोर सिंह, जुही कुमारी, अनुराधा कुमारी, नेहा आनंद, आदि उपस्थित थे।।

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