● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: राष्ट्र मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है, और न ही यह सत्ता का एक केंद्र मात्र है, बल्कि राष्ट्र एक सांस्कृतिक एवं मूल्यात्मक इकाई है। यह इकाई राष्ट्र के सभी नागरिकों से मिलकर बनती है। राष्ट्र के सभी नागरिकों का आपस में भावनात्मक एवं आत्मिक लगाव होता है और यही लगाव राष्ट्रवाद का असली सूत्र है।
उक्त बातें सुप्रसिद्ध दार्शनिक आईसीपीआर के अध्यक्ष प्रो.( डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा (नई दिल्ली) ने कही। वे "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम" विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। 'भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्' द्वारा प्रायोजित यह सेमिनार स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में टीपी कॉलेज, मधेपुरा में आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा कि भारत सदियों से एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। यह एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह है, जिसमें विभिन्न धर्म, जाति एवं संप्रदाय के लोग फूलों की तरह सजे हुए हैं। बहुलता में एकता भारत की अद्भुत विशेषता है।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी-अपनी अस्मिता होती है। यह अस्मिता ही राष्ट्र की असली पहचान हैं। इसलिए राष्ट्रीय अस्मिता के लिए किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का राष्ट्र के प्रति भावनात्मक लगाव या राष्ट्रभक्ति जरूरी है। किसी भी समान्य मनुष्य का अपनी राष्ट्रीयता से ऊपर उठना संभव नहीं है। राष्ट्रीयता को छोड़ना किसी वृक्ष के अपनी जड़ों से कटने और शरीर से आत्मा के अलग होने के समान है।
प्रो. मुरलीधर पांडा (दक्षिण अफ्रीका) ने कहा कि भारतीय सांस्कृति एक विशिष्ट संस्कृति है। यह संस्कृति धर्म पर आधारित है। इसमें संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना है। सर्वे भवन्तु सुखिन: और वसुधैव कुटुंबकम् इसका आदर्श है।
उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इंडिया फर्स्ट या अमेरिका फर्स्ट का नारा नहीं लगता है। इसमें दूसरे देशों के साथ भेदभाव या घृणा नहीं है। यह समवेत रूप से सभी देशों को आगे लाना चाहता है। यह मानता है कि विश्व के कल्याण में ही भारत का कल्याण निहित है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद के बगैर कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता है। इतिहास साक्षी है कि दुनिया में वही रास्ता आगे बढ़े हैं, जिनके नागरिकों के अंदर राष्ट्रप्रेम की भावना रही है। लेकिन राष्ट्रप्रेम की भावना तभी विकसित हो सकती है, जब राष्ट्र अपने सभी नागरिकों की अपेक्षाओं एवं आकांक्षाओं को पूरा करेगा।
डॉ. श्वेता दिप्ति (नेपाल) ने कहा कि हमारी जन्मभूमि हमारे लिए सर्वोपरि है। हमारे अंदर देशप्रेम की जो भावना है, वह कभी भी मरती नहीं है। हम कहीं भी चले जाएं, हमारा मिट्टी के प्रति प्रेम बना रहता है।
डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट (धनबाद,झारखंड) ने कहा कि सिर्फ सबका साथ, सबका विकास का नारा देने से राष्ट्रवाद नहीं आएगा। हमें वास्तव में राष्ट्र के सभी नागरिकों के बारे में सोचना होगा। यदि हम नागरिकों को धर्म एवं जातियों में बांटेंगे, तो राष्ट्र कमजोर होगा।
उन्होंने कहा कि हम आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में भी सभी लोगों को भोजन, वस्त्र, आवास एवं शिक्षा उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। ऐसे समय में लोगों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाना हास्यास्पद है।
बिहार दर्शन परिषद् की उपाध्यक्ष डॉ. पूनम सिंह ने भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद धर्म एवं मानवता पर आधारित है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा ने कहा कि हम अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं, तो हम बरगद की तरह विशाल बनते हैं। लेकिन यदि हम संस्कृति से अलग हटते हैं, तो जड़ों से कटे वृक्ष की तरह नष्ट हो जाते हैं।
सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. राजकुमार सिंह ने कहा कि भारत हमेशा से सांस्कृतिक राष्ट्र रहा है। हम सभी यह मानते हैं कि राष्ट्र के विकास में ही समाज एवं व्यक्ति का भी विकास निहित है।
उन्होंने कहा कि संस्कृति जीवन पद्धति है, जो निरंतर परिवर्तनशील है। संस्कृति में समय के साथ कुछ पुरानी बातें छूट जाती हैं और कुछ नई बातें जुड़ती हैं।
उन्होंने कहा कि आज भूमंडलीकरण के कारण विभिन्न संस्कृतियों को खोने का डर हो गया है। भूमंडलीकरण का भारतीय सांस्कृति पर भी प्रति कूल असर पर रहा है।
भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. राजकुमारी सिन्हा (राँची) ने कहा कि भारत सदियों से एक राष्ट्र है। हमारे देशप्रेम, राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्रीयता की अनुगूँज प्राचीन काल से आज तक कायम है। आज हमारे देश के ऊपर बाह्य एवं आंतरिक दोनों खतरा मौजूद है। हमें दोनों खतरों का डटकर मुकाबला करना है। हम एक रहेंगे, तो हमारा राष्ट्रवाद हमेशा कायम रहेगा।
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो.( डाॅ.) मनोज कुमार ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद अंतरराष्ट्रीयतावाद का पोषक है। इसमें व्यक्ति को अपने परिवार के हित में, परिवार को समाज के हित में, समाज को राष्ट्र के हित में और राष्ट्र को विश्व के हित में आहुति देने का आदर्श निहित है।
गाँधी विचार विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अध्यक्ष डाॅ. विजय कुमार ने कहा कि भारत में वैचारिक सहिष्णुता रही है। हमने अलग-अलग विचारों एवं आस्थाओं को अपने अंदर समाहित किया। यही भारत को दुनिया का संदेश है।
डाॅ. आलोक टण्डन (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति मेें अंतर है। देशभक्ति एक उदात्त भावना है, जबकि राष्ट्रवाद एक राजनैतिक परियोजना है। देशभक्ति की भावना प्राचीन काल से रही है, जबकि राष्ट्रवाद की राजनैतिक विचारधारा एवं राष्ट्र-राज्यों की स्थापना आधुनिकता की उपज है। अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रो.( डाॅ.) के.पी. यादव ने किया। संचालन आयोजन सचिव सह जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन ले. गुड्डु कुमार ने किया।
इस अवसर पर अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान, सिंडिकेट सदस्य द्वय डाॅ. जवाहर पासवान एवं कैप्टन गौतम कुमार, डाॅ. अफाक हासमी (दरभंगा), डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, डाॅ. प्रियंका सिंह, डाॅ. राजकुमार रजक, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, डेविड यादव आदि उपस्थित थे।
सेमिनार हाॅल को राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगने की कोशिश की गई थी। मुख्य बैनर को तिरंगे के रंग में बनाया गया था। हाॅल के अंदर राष्ट्रीय महापुरूषों के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गईं। शिक्षिका शशिप्रभा जायसवाल ने काश्मीर क्या मांग रहे हो, क्या मांग रहे हो, सारा देश तुम्हारा है देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया।
अंत में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् और राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन के साथ समारोह संपन्न हुआ।।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें