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शनिवार, 17 जुलाई 2021

कॉलेज कैम्पस: हिन्दी साहित्य का भंडार काफी समृद्ध,इसके बावजूद हिन्दी भाषा को उसका वाजिब हक नहीं मिला है...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: हिन्दी महज एक भाषा नहीं है। यह भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विस्तार है। इसके साथ भारतीय राष्ट्रीयता एवं भाईचारा की भावना जुड़ी हुई है। 
यह बात विश्व हिंदी दिवस के प्रस्तावक एवं हिंदी सलाहकार समिति, भारत सरकार के सदस्य वीरेन्द्र कुमार यादव ने कही। वे टीपी कॉलेज, मधेपुरा में आयोजित राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि हम हिंदी की बात भी हिंदी में नहीं करते थे। हम संकल्प हिन्दी की लेते है और विकल्प अंग्रेजी का चुनते हैं। यह बेहद दुखद स्थिति है। इसकी एक बानगी है कि हम हिंदीभाषी भी अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं। एक आंकड़ा के अनुसार पटना के लोग जो हिंदी में दक्ष हैं, उनमें से  98.4 प्रतिशत लोग बैंक में खाता खुलवाने वक्त अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं।
उन्होंने सबों का आह्वान किया कि बैंक एवं अन्य सभी जगहों पर अपना अधिकृत हस्ताक्षर हिन्दी या अपनी मातृभाषा में करें। हम अंग्रेजी को छोड़कर अपनी भाषा में हस्ताक्षर करना शुरू करें, तो मैं समझता हूँ कि तभी इस गोष्ठी की सार्थकता होगी।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अथक प्रयास करती है। इसके लिए केन्द्रीय हिन्दी समिति और कई अन्य समितियाँ बनाई गई हैं।
उन्होंने कहा कि राम के वनवास की अवधि 14 वर्ष थी। लेकिन हिंदी का वनवास 74 वर्षों में भी समाप्त नहीं हुआ है। आशा है कि आजादी के अमृत महोत्सव (75 वें वर्ष) में हिंदी का वनवास समाप्त होगा और हिंदी सचमुच में राष्ट्रभाषा बनेगी।
उन्होंने कहा कि जिस देश के लोग अपने देश के उपजे हुए अन्न को नहीं खाते, वे हमेशा भूखे रहते हैं। जिस देश के लोग अपने देश में बुने हुए कपड़े नहीं पहनते, उनकी नग्नता कभी नहीं ढंकती है। जिस देश के लोग अपनी भाषा बोलने में, लिखने में शर्म महसूस करते हैं, वह देश कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है। 
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में भारत भी एक ऐसा देश है, जहाँ के लोग अपनी मातृभाषा से अधिक विदेशी भाषा से प्रेम करते हैं। आज हम विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। लेकिन देश में हिंदी की स्थिति संतोषजनक नहीं है। हमें हिंदी को महज साहित्य ही नहीं, बल्कि ज्ञान-विज्ञान, दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र, शासन-प्रशासन एवं न्यायालय की भाषा बनाना होगा। हमें हिंदी को पावर एवं रूतबा देना होगा। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने कहा कि हिंदी साहित्य का भंडार काफी समृद्ध है। इसके बावजूद हिंदी भाषा को उसका वाजिब हक नहीं मिला है।
मंच संचालक डॉ. विनय कुमार चौधरी ने कहा कि हमें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास हेतु कार्य करने की जरूरी है।
इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. विश्वनाथ विवेका, सिंडिकेट सदस्य डॉ. जवाहर पासवान, उपकुलसचिव परीक्षा शशिभूषण, उप कुलसचिव अकादमिक डाॅ. सुधांशु शेखर, मैथिली विभागाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र प्रसाद यादव, साहित्यकार मणिभूषण वर्मा, शिक्षक सियाराम यादव मयंक, ओमप्रकाश कुमार आदि उपस्थित थे।।

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