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बुधवार, 21 अप्रैल 2021

BNMU कैम्पस: बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर सम्पूर्ण मानवता के उन्नायक थे...

● Sarang Tanay@Madheura.
मधेपुरा/बिहार: भारतरत्न बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अंबेडकर के जीवन-दर्शन का आयाम काफी व्यापक है। वे एक अर्थशास्त्री, दर्शनशास्त्री, धर्मशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, इतिहासकार, कानूनविद एवं संविधान विशेषज्ञ तो थे ही कई अन्य विषयों के भी ज्ञाता थे। दुनिया के इस बड़े विद्वान के जीवन-दर्शन के कई पक्ष अभी भी आम लोगों के समक्ष नहीं आ सके हैं। इसलिए आज डाॅ. अंबेडकर के जीवन-दर्शन को लेकर अधिकाधिक शोध करने की जरूरत है। उक्त बातें कुलपति प्रो.( डॉ.) आर के पी रमण ने कही।
वे डाॅ. अंबेडकर के 130वीं जयंती सप्ताह में जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर से उनकी पुस्तक "सामाजिक न्याय : अंबेडकर-विचार और आधुनिक संदर्भ" ग्रहण कर रहे थे। इस पुस्तक में डाॅ. अंबेडकर के विचारों को उनके मूल ग्रंथों के आधार पर प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है और सामाजिक न्याय को अंबेडकर की दृष्टि से समझने की कोशिश की गई है।
कुलपति ने डाॅ. शेखर को इस पुस्तक के लिए बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं और आगे भी रचनात्मक सक्रियता बनाए रखने का आशीर्वाद दिया। कुलपति ने कहा कि यह पुस्तक न केवल अंबेडकर एवं समकालीन विमर्शों में रूचि रखने वाले शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों, वरन् आम लोगों के लिए भी उपयोगी है। उन्होंने कहा कि डाॅ. अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समाज एवं राष्ट्र के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके जीवन का एक-एक क्षण हमारे लिए प्रेरणादायी है और उनके विचारों के विभिन्न आयामों पर शोध की जरूरत है।
कुलपति ने कहा कि डाॅ. अंबेडकर ने विपरीत परिस्थितियों में भी उच्च शिक्षा ग्रहण किया। आज दुख की बात है कि हम सुविधाओं के बावजूद शिक्षा ग्रहण करने में पीछे हैं। हमें यह याद रहे कि यदि हमारे मन में सच्चा संकल्प हो, तो गरीबी हमारे विकास के मार्ग में बाधा नहीं बन सकती है।
जनसंपर्क पदाधिकारी सुधांशु शेखर ने बताया कि उनकी पुस्तक में सात खंड हैं। इसका प्रथम खंड भूमिका है। द्वितीय खंड में सामाजिक न्याय के अर्थ एवं साधन और इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय खंड में स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, धम्म एवं शिक्षा की व्याख्या की गई है। चतुर्थ खंड में ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद, सामाजिक जनतंत्र एवं राज्य समाजवाद पर विचार किया गया है। पंचम खंड में दलित मुक्ति, स्त्री सशक्तिकरण, राष्ट्र प्रेम आदि की चर्चा है।
 षष्ठ खंड में गाँधीवाद, मार्क्सवाद एवं मानववाद आदि की अंबेडकर की दृष्टि में समीक्षा की गई है। 
सप्तम खंड में ऑनर किलिंग, आरक्षण, जाति गणना, दलित साहित्य, दलित राजनीति, मानवाधिकार, भूमंडलीकरण एवं विश्व  शांति पर संक्षिप्त टिप्पणी की गई है। अंतिम खंड निष्कर्ष है। 
इसमें यह स्थापित किया गया है कि डाॅ. अंबेडकर केवल दलितों के नेता नहीं थे, बल्कि वे संपूर्ण मानवता के उन्नायक थे। आज हम सबों को मिलकर डाॅ. अंबेडकर के विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने और उनके सपनों को साकार करने की जरूरत  है।
इस अवसर पर कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव सहित अन्य उपस्थित थे।।

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