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रविवार, 21 मार्च 2021

मधेपुरा: डॉ.अम्बेडकर नेशनल अवार्ड-2020 से नवाजे गये डॉ जवाहर पासवान...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: दलित साहित्य मुख्य रूप से सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक,  राजनीतिक एवं धार्मिक दृष्टि से दलित, शोषित, पीड़ित अपमानित, उपेक्षित, तिरस्कृत एवं वंचित वर्ग की चीख, छटपटाहट एवं पीड़ा की अभिव्यक्ति है। इसे सामाजिक न्याय के सपनों एवं संघर्षों का दस्तावेज कहा जा सकता है। यह बात बीएनएमयू के सीनेट एवं सिंडिकेट सदस्य सह राजनीति विज्ञान विभाग, टीपी कॉलेज मधेपुरा के एचओडी डाॅ. जवाहर पासवान ने कही। वे रविवार को राजकीय अंबेडकर कल्याण छात्रावास में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने प्रेस-मीडिया को भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्राप्त डाॅ. अंबेडकर राष्ट्रीय अवार्ड के संबंध में जानकारी दी, जो उन्हें दलित साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया गया है। इस कोटि में देश के चार लेखकों को सम्मानित किया गया है, जिसमें डाॅ. जवाहर पासवान का नाम प्रथम है। इनके अलावा कमला वर्मा, उज्जैन (मध्य प्रदेश), गुलाबचन्द बारासा, जोधपुर (राजस्थान), सुल्तान सिंह गौतम, दिल्ली को भी यह पुरस्कार मिला। इस अवसर पर अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष सोहनपाल सुमनाक्षर, प्रांतीय अध्यक्ष जागा राम शास्त्री,राष्ट्रीय सचिव जय सुमनाक्षर, सहित यह सम्मान श्री राजेन्द्र पाल गौतम कल्याण मंत्री दिल्ली सरकार,डाॅ.सत्यनारायण जाटिया पूर्व मंत्री भारत सरकार, श्योमराज सिंह बेचैन वरिष्ठ साहित्यकार, श्री संघप्रिय गौतम पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार, श्री मति श्यामा कुमारी अधिवक्ता  सर्वोच्च न्यायालय, श्री बबन राव घोलप पूर्व समाज कल्याण मंत्री महाराष्ट्र सरकार, श्री ओ.पी.आजाद राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय दलित साहित्य अकादमी यू.के.,श्री ठाकुर चन्द्र गहतराज राष्ट्रीय अध्यक्ष दलित साहित्य अकादमी नेपाल आदि के उपस्थिति में मिला।
डाॅ. जवाहर ने कहा कि दलित साहित्य मानवतावादी साहित्य है। इसमें सबों के लिए स्वतंत्रता, समानता, बंधुता एवं न्याय का पक्षधर है।
उन्होंने बताया कि दलित साहित्य से संबंधित उनकी सात पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इसमें भारत के दलित आंदोलन में बिहार की भूमिका, पिछड़ी जातियों का राजनीतिक अभिजन, भारतीय स्वशासन में पंचायती राज व्यवस्था, भारतीय राजनीति में नैतिक लोकतंत्र की तलाश, भूमंडलीकरण में भारतीय राजनीति का महत्व, डॉ. लोहिया का समज दर्शन : समकालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य एवं अस्मिता संकट और दलित विमर्श नामक पुस्तक शामिल हैं। वहीं विभिन्न शोध पत्रिका में तकरीबन 60 आलेख, तकरीबन दो दर्जन सेमिनार, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित  हो चुके हैं।
   उन्होंने बताया कि डा. पासवान ने शोषित वर्ग के अधिकार की समाप्ति के विरुद्ध केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के नीति के विरोध में आम जन के साथ आन्दोलन में प्रमुख सहभागिता निभाई। वहीं एससीएसटी कानून बदलाव के विरुद्ध आन्दोलन का मधेपुरा में नेतृत्व किया। सीएए, एनआरसी के विरुद्ध मधेपुरा में नेतृत्व और ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ के विरुद्ध आन्दोलन की सहभागिता में प्रमुख भागीदारी रही।
उन्होंने बताया कि वे भारतीय दलित साहित्य अकादमी, दिल्ली के कोशी प्रमंडल अध्यक्ष भी हैं। इन्हें समिति द्वारा 2011 में भगवान बुद्ध राष्ट्रीय पुरस्कार एवं 2012 में  पुनः भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ही डा अंबेदकर राष्ट्रीय सेवा सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वे जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सदस्य और राजकीय अम्बेडकर कल्याण छात्रावास के अधीक्षक भी हैं, साथ ही महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न कमिटी के सदस्य सहित अन्य पदोंं को भी सुशोभित कर रहे हैं। 
बीएनएमयू के जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने कहा कि डाॅ. जवाहर पासवान को पुरस्कार मिलने से पूरे कोसी क्षेत्र एवं बिहार का गौरब बढ़ा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि डाॅ. जवाहर अपने लेखन एवं संघर्ष के माध्यम से मानवतावादी विचारों के प्रचार-प्रसार में निरंतर सक्रिय रहेंगे।
इस अवसर पर डाॅ. सुभाष पासवान, सारंग तनय, डेविड यादव, शुभम,शिवम, सत्यम आदि उपस्थित थे।।

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