● Sarang Tanay@BNMU.
मधेपुरा/बिहार: कोविड-19 का देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है। शहर और गांव दोनों इससे प्रभावित हैं। शिक्षा, समाज एवं अर्थव्यवस्था पर इसका कुप्रभाव पड़ा है। भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका मार झेल रही है। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभावों का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है।
यह बात बी.एन.मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही।
वे शनिवार को कोविड-19 का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव विषयक एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में बोल रहे थे।
वेबीनार का आयोजन अर्थशास्त्र विभाग, महिला महाविद्यालय, खगड़िया एवं ए. एस. काॅलेज, देवघर के संयुक्त तत्वावधान में अनुचिंतन फाउंडेशन तथा अंग विकास परिषद् के सहयोग से आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में चार पुरुषार्थ माने गए हैं। ये हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मानव को जीने के लिए अर्थ यानि धन चाहिए। बिना अर्थ के हमारी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। यदि समय पर मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो, तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि कोरोना ने हमारे जीविकोपार्जन के साधनों पर भी कुप्रभाव डाला है। खासकर जो मजदूर एवं कामगार हैं, उनका जीवन दुभर हो गया है।
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से उत्पन्न समस्याओं का समाधान एवं निदान हमारी परंपरा में है। हमारी संस्कृति में सादगी, संयम एवं सदाचार की शिक्षा दी गई है। हमारा योग और आयुर्वेद हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सक्षम है। हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपने पाठ्यक्रम में भारतीय सभ्यता-संस्कृति, दर्शन, योग- आयुर्वेद आदि को शामिल करें, ताकि हमारी भावी पीढ़ी इससे परिचित हो सके। ज्ञान विज्ञान के उच्च शिखर पर रखें ताकि मानव इन दोनों से अच्छे से परिचित हो सकें।
इस अवसर पर बीएनएमयू के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि कोरोना संक्रमण महज स्वास्थ्य या अर्थ व्यवस्था का संकट नहीं है। यह जीवन-दर्शन एवं सभ्यता- संस्कृति का संकट है। यह विकास नीति एवं जीवन मूल्य से जुड़ा संकट है। हम कोरोना संक्रमण से सीख एवं सबक लें। हमें संकट का उपचार तो करना ही चाहिए और साथ ही उसका स्थाई निदान भी ढूंढना चाहिए। हम भोगवादी आधुनिक सभ्यता-संस्कृति और भौतिक विकास की होड़ को छोड़ें। अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति और प्रकृति-पर्यावरण की शरण में जाएं।
उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण का कोरोना गांव को खा गया है। गांव मर रहा है, शहर के पेट में समा रहा है। हमें गांव को बचाना होगा। गांव को बचाने का मतलब महज एक भौगोलिक क्षेत्र को बचाना नहीं है, बल्कि ग्रामीण मूल्यों को बचाना है। सादगी, संयम, सदाचार, सहकार आदि ग्रामीण मूल्यों को अपनाएं। इससे गांव भी बचेगा और हम भी बचेंगे।।
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