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शनिवार, 6 जून 2020

BNMU कैम्पस: हमें प्रकृति के शरण में जाने की है जरूरत-डॉ ज्ञानंजय द्विवेदी...

मधेपुरा/बिहार: आज मानव अपने को प्रकृति का मालिक और प्रकृति को अपनी दासी समझने लगा है। हम यह भूल गए हैं कि प्रकृति सिर्फ मानव के लिए नहीं है। सभी का समान अधिकार है। मानव का यह अहंकार प्रकृति-पर्यावरण के संकट के लिए जिम्मेदार है। अतः हमें अपने अहंकार को छोड़कर प्रकृति की शरण में जाने की जरूरत है।
यह बात कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे शनिवार को केंद्रीय पुस्तकालय में 'मानव और पर्यावरण' विषयक परिचर्चा में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे। यह आयोजन राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में किया गया था। परिचर्चा के पूर्व शिक्षा वाटिका में पौधारोपण भी किया गया।

कुलपति ने कहा कि प्रकृति-पर्यावरण की रक्षा पर ही मानव जीवन और संपूर्ण चराचर जगत का अस्तित्व निर्भर करता है। प्रकृति की ओर लौटो-प्रकृति की शरण में जाओ। यदि हम प्रकृति-पर्यावरण की शरण में जाएँगे, तभी हम बचेंगे।

कुलपति ने कहा कि संपूर्ण चराचर जगत में ईश्वरीय चेतना का वास है। मानव से लेकर पत्थर तक सभी में चेतना का वास है। भारतीय संस्कृति संपूर्ण चराचर जगत को एक मानती है। हमारी यह मान्यता है कि मनुष्य, मनुष्येतर प्राणी एवं चराचर जगत एक है। हम सबों के विकास एवं कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। चराचर जगत से प्रेम यही हमारी पहचान है। हम लोग वृक्षों की पूजा करते हैं। यह हमारी संस्कृतिक विरासत है।
कुलपति ने कहा कि हमारी संस्कृति में प्रकृति-पर्यावरण के संरक्षण पर विशेष बल दिया गया है।  प्रकृति-पर्यावरण सभी जीवों के लिए है। इस पर सभी जीवों का समान अधिकार है। एक विवेकशील प्राणी के रूप में मानव की यह विशेष जिम्मेदारी है कि वो प्रकृति-पर्यावरण की रक्षा करे। इस दिशा में पौधारोपण एक महत्वपूर्ण कदम है। 

कुलपति ने आह्वान किया कि धरती एवं पर्यावरण की सुरक्षा एवं इसकी देखभाल हम मानव का परम धर्म है। पौधे ना केवल हमें स्वच्छ वातावरण प्रदान करते हैं, बल्कि हमें नया जीवन भी देते हैं। इसी तरह नदियों, पहाड़ों सभी का हमारे जीवन में महत्व है।

कुलपति ने कहा कि पर्यावरण का संकट पहचान का संकट है। हम अपने को भूल गए हैं और अपनी संस्कृति को भूल गए हैं। यही पहचान का संकट पर्यावरण संकट के लिए जिम्मेदार है। 

कुलपति ने कहा कि हम केवल पौधारोपण नहीं करें बल्कि पौधों की देखभाल भी करें और पेड़-पौधों का सम्मान करें। हमारा पेड़-पौधों के साथ नैतिक साहचर्य होना चाहिए। हम पेड़-पौधों को अपना परिजन मानें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डीएसडब्लू डॉ. अशोक कुमार यादव ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा द्वारा 1972 में यह तय किया गया कि प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाए। यह दिवस हमें सचेत करता है। यह बताता है कि यदि हम पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुए, तो हमारा जीवन संकट में पड़ जाएगा। लेकिन हमें एक दिन नहीं, बल्कि प्रत्येक दिन प्रकृति-पर्यावरण का संरक्षण एवं सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण के लिए पेड़-पौधा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। पेड़-पौधा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर हमें ऑक्सिजन देते हैं और कार्बोहाइड्रेट के रूप में हमारे लिए भोजन की व्यवस्था भी करते हैं। एक आदमी के ऑक्सिजन लिए कम-से-कम तीन व्यस्क पेड़ की जरूरत होती है।

सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डाॅ. आर.के.पी. रमण ने कहा कि पर्यावरण में ही मानव जन्म लेता है, पलता है और विसर्जित होता है। यदि हम पर्यावरण से दूर होकर हमारे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। पर्यावरण की सुरक्षा हमारा सर्वप्रमुख दायित्व है।

विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव डाॅ. अशोक कुमार ने कहा कि सभी पदाधिकारियों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों को मिलकर कुलपति महोदय का हर तरह से सहयोग करना चाहिए। कुलपति के नेतृत्व में एनएसएस भी काफी आगे बढ़ेगा।
समन्वयक डाॅ. अभय कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में  विश्वविद्यालय में काफी पौधे लगाए गए हैं। आगे भी पौधारोपण जारी रहेगा।
इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका, सीसीडीसी डाॅ.  इम्तियाज अंजुम, डाॅ. ललन प्रसाद अद्री, डाॅ. नवीन कुमार, डाॅ. अशोक कुमार सिंह, डाॅ. अभय कुमार, खेल सचिव डाॅ. अबुल फजल, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, सीएम साइंस काॅलेज, मधेपुरा के डाॅ. संजय कुमार, डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, डाॅ.  नारायण कुमार, डाॅ. आरती झा, अनिल कुमार, समीर आनंद, प्रवीण, शांतानु यदुवंशी,गौरव कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।।

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