बहुत लोग इस बात से खुश हो सकते हैं कि अब विश्वविद्यालय को ठीक करने के लिए एक फौजी आ गया है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या विश्वविद्यालय रनक्षेत्र है ? क्या यहाँ देशद्रोही, आतंकी रहते हैं ? एक मज़ेदार कहानी एक दरोगा के बारे में हमारे पत्रकार मित्र रवि जी सुनाते हैं. सिंहेश्वर थाने के एक दरोगा जी थे जो पहले ट्रेफिक में थे. उन्हें आदत हो गयी थी हुसिल साथ रखने की. हुसिल से ही इशारा करने की. एक बार उनके बड़े साहब उन्हे रेड में ले गए. अपराधी की घेराबंदी करनी थी दरोगा जी हुसिल मार दिए... क्या हुआ होगा अंदाजा लगा सकते हैं. आज यही अंतर समझने की शायद जरूरत है. 8 अगस्त को जो हुवा वह विश्वविद्यालय के इतिहास में एक शर्मसार करनेवाली घटना थी.

बीएन मंडल विश्वविद्यालय में बहाली की प्रक्रिया में छात्र नेता गड़बड़ी का आरोप लगाते है... न ऐसा आरोप नया है.... न आन्दोलन नया है.. लेकिन मारपीट की घटना जरूर नई है. जो घटना हुई वह विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली घटना है.... तो क्या विश्वविद्यालय की सुरक्षा में अब सेना को लगाया जाय.... यह सोच विश्वविद्यालय के लिए नई है. विश्वविद्यालय के अधिकारी का गाली से बात करने की परम्परा जरूर नई है. कर्मचारी को लाठी रखने का आदेश भी नया है. ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय प्रशासन, शिक्षक, कर्मचारी, छात्र और मधेपुरा के अविभावकों, बुद्धिजीवियों को भी सोचना होगा सरस्वती के मंदिर में जो हो रहा है यह कितना सही है.
तुरबसु सचिन्द्र
वरिष्ठ पत्रकार, न्यूज़ 18
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें