दुश्मनों के हौसले,
अब ना बुलंद करो।
जिन्ना के 'जिन्न' को;
बोतल में बंद करो ।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ हाॅल में मुहम्मद अली जिन्ना का तस्वीर सन् 1938 से लगी हुई है। कुछ दिन पहले जब भाजपा नेता 'सतीश गौतम' ने ए.एम.यू.के कुलपति को पत्र लिखकर इस तस्वीर के बारे में स्पष्टीकरण मांगा तो यह विवादों का विषय बन गया। विश्वविद्यालय के छात्र और हिंदूवादी संगठनों के बीच झड़प भी हुई। कुछ नेता इतिहास जाने बगैर जिन्ना को लेकर बेतुका बयान भी दे रहे हैं। देश को बांटने वाला व्यक्ति ही देश के विश्वविद्यालय के छात्रों का आदर्श है तो ऐसे विश्वविद्यालय में ताला जड़कर जिन्ना के जिन्न को बोतल में बंद ही करना उचित होगा। कुछ विद्वान लोग मानते हैं कि जिन्ना ने भारत की आजादी में अहम् भूमिका निभाई थी तो उन विद्वानों से कुछ प्रश्न भी लाजमी है,जिन्होंने भारत की आजादी में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी ।
1.क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानता है?
2. क्या सुभाष चंद्र बोस,लाला लाजपत राय,मौलाना अबुल कलाम आजाद,जैसे महान नेताओं की तस्वीरें पाकिस्तान और बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में लटकती है ?
3. क्या पाकिस्तान अपने छात्रों को इतिहास का वास्तविक ज्ञान देता है?
इन सभी प्रश्नों का जवाब है नहीं? तो हम जिन्ना की तस्वीरों को क्यों ढ़ोते रहें?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास :-
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक 'सर सैयद अहमद खां' थे।'काजी मोहम्मद आदिल अब्बासी' कि एक प्रमाणित किताब 'खिलाफत आन्दोलन'(नेशनल ट्रस्ट बुक द्वारा प्रमाणित) में यह स्पष्ट लिखा है कि सैयद अहमद खां ही टू नेशन थ्योरी का जन्मदाता था ऐसा उनके भाषण में मुस्लिमों को संबोधित किए गए वाक्यों से पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की आजादी को टाला जाए,अगर भारत आजाद हो गया तो एक चौथाई मुस्लिमों की हकमारी हो जाएगी।इससे बेहतर है कि वह वर्तमान सरकार यानी ब्रिटिश सरकार से वफादारी का तमगा लें। यानी सैयद नहीं चाहते थे कि भारत कभी आजाद हो। 23 मार्च सन् 1940 को लाहौर में 'मुस्लिम लीग' ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही मुस्लिम लीग के सदस्य पूरे देश में फैलते गए और इस तरह पाकिस्तान बनाने का विचार शुरू हुआ;जिस 'मुस्लिम लीग' के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना थे यानी भारत के बंटवारे का सूत्रधार जिन्ना साहब।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के विद्वान 'यास्मीन खान'अपनी किताब 'द ग्रेट पार्टीशन द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान' में स्पष्ट लिखा है 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' से मुस्लिम लीग और पाकिस्तान बनाने का समर्थन प्राप्त था।
भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद सन्1947 के दंगे में लाला लाजपत राय की मूर्ति लाहौर में तथा महात्मा गांधी की मूर्ति सन् 1950 में करांची में तोड़ दी गई। क्या इन नेताओं ने पाकिस्तान की आजादी के लिए नहीं लड़ा था फिर भी इनकी तस्वीर को वह नहीं लटकाते तो फिर हम क्यों लटकाएं? अगर यूनिवर्सिटी जैसे शिक्षण संस्थानों के युवा वर्ग भटकने लगे तो इस देश के भविष्य का क्या होगा क्या यह देश फिर बटवारा होगा? जरूरत है इन सभी बातों पर विचार करके ऐसे विचारधारा वाले लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।जिन्ना जैसा व्यक्ति हमारे देश के विश्वविद्यालय तो क्या किसी भी विद्यालय के छात्रों का आदर्श नहीं हो सकता।
विभीषण कुमार
छात्र:-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा।
अब ना बुलंद करो।
जिन्ना के 'जिन्न' को;
बोतल में बंद करो ।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ हाॅल में मुहम्मद अली जिन्ना का तस्वीर सन् 1938 से लगी हुई है। कुछ दिन पहले जब भाजपा नेता 'सतीश गौतम' ने ए.एम.यू.के कुलपति को पत्र लिखकर इस तस्वीर के बारे में स्पष्टीकरण मांगा तो यह विवादों का विषय बन गया। विश्वविद्यालय के छात्र और हिंदूवादी संगठनों के बीच झड़प भी हुई। कुछ नेता इतिहास जाने बगैर जिन्ना को लेकर बेतुका बयान भी दे रहे हैं। देश को बांटने वाला व्यक्ति ही देश के विश्वविद्यालय के छात्रों का आदर्श है तो ऐसे विश्वविद्यालय में ताला जड़कर जिन्ना के जिन्न को बोतल में बंद ही करना उचित होगा। कुछ विद्वान लोग मानते हैं कि जिन्ना ने भारत की आजादी में अहम् भूमिका निभाई थी तो उन विद्वानों से कुछ प्रश्न भी लाजमी है,जिन्होंने भारत की आजादी में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी ।
1.क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानता है?
2. क्या सुभाष चंद्र बोस,लाला लाजपत राय,मौलाना अबुल कलाम आजाद,जैसे महान नेताओं की तस्वीरें पाकिस्तान और बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में लटकती है ?
3. क्या पाकिस्तान अपने छात्रों को इतिहास का वास्तविक ज्ञान देता है?
इन सभी प्रश्नों का जवाब है नहीं? तो हम जिन्ना की तस्वीरों को क्यों ढ़ोते रहें?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास :-
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक 'सर सैयद अहमद खां' थे।'काजी मोहम्मद आदिल अब्बासी' कि एक प्रमाणित किताब 'खिलाफत आन्दोलन'(नेशनल ट्रस्ट बुक द्वारा प्रमाणित) में यह स्पष्ट लिखा है कि सैयद अहमद खां ही टू नेशन थ्योरी का जन्मदाता था ऐसा उनके भाषण में मुस्लिमों को संबोधित किए गए वाक्यों से पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की आजादी को टाला जाए,अगर भारत आजाद हो गया तो एक चौथाई मुस्लिमों की हकमारी हो जाएगी।इससे बेहतर है कि वह वर्तमान सरकार यानी ब्रिटिश सरकार से वफादारी का तमगा लें। यानी सैयद नहीं चाहते थे कि भारत कभी आजाद हो। 23 मार्च सन् 1940 को लाहौर में 'मुस्लिम लीग' ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही मुस्लिम लीग के सदस्य पूरे देश में फैलते गए और इस तरह पाकिस्तान बनाने का विचार शुरू हुआ;जिस 'मुस्लिम लीग' के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना थे यानी भारत के बंटवारे का सूत्रधार जिन्ना साहब।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के विद्वान 'यास्मीन खान'अपनी किताब 'द ग्रेट पार्टीशन द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान' में स्पष्ट लिखा है 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' से मुस्लिम लीग और पाकिस्तान बनाने का समर्थन प्राप्त था।
भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद सन्1947 के दंगे में लाला लाजपत राय की मूर्ति लाहौर में तथा महात्मा गांधी की मूर्ति सन् 1950 में करांची में तोड़ दी गई। क्या इन नेताओं ने पाकिस्तान की आजादी के लिए नहीं लड़ा था फिर भी इनकी तस्वीर को वह नहीं लटकाते तो फिर हम क्यों लटकाएं? अगर यूनिवर्सिटी जैसे शिक्षण संस्थानों के युवा वर्ग भटकने लगे तो इस देश के भविष्य का क्या होगा क्या यह देश फिर बटवारा होगा? जरूरत है इन सभी बातों पर विचार करके ऐसे विचारधारा वाले लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।जिन्ना जैसा व्यक्ति हमारे देश के विश्वविद्यालय तो क्या किसी भी विद्यालय के छात्रों का आदर्श नहीं हो सकता।
विभीषण कुमार
छात्र:-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा।