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मंगलवार, 18 जुलाई 2017

भारतीय सेकुलरिज्म का दोहरा चरित्र- भाष्कर ज्योति

अयूब पंडित और फ़याज़ के लहू का भी रंग लाल
RSS कार्यकर्ता गोपाल तिवारी के शोणित का भी रंग लाल
किन्तु NDTV को सिर्फ जुनैद और अख़लाक़ का ही क्यूँ है मलाल ???
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चूँकि देश के तथाकथित बुद्धिजीवी तथा विशिष्ट मीडिया वर्ग भारत में होने वाले हत्यायों को मानवता की हत्या के बजाय धर्म विशेष की हत्या के रूप में देखने लगे हैं तो यह आवश्यक हो गया है कि कम पढ़े लिखे लोग भी धर्म के नाम पर हो रहे हत्यायों पर एक नजर डाले...सेकुलर जिहादी तत्वों द्वारा किये जा रहे लाखों हत्यायों को यदि तत्काल नजर अंदाज कर दिया जाए क्योंकि देश के प्रगतिवादी लोगों तथा प्राइम टाइम एंकर्स का मानना है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, धर्म होता है तो सिर्फ हिन्दुओं, इसाईयों एवं यहूदियों का बाकी जो लोग हैं वे या तो अधार्मिक हैं अथवा प्रोग्रेसिव, सेकुलर तथा मानवतावाद के प्रणेता.
पिछले 6 महीने में पश्चिम बंगाल में कम से कम 6 से अधिक बार साम्प्रादायिक दंगे हुए, जिनमे खुले आम हिन्दुओं को या तो मारा गया प्रताड़ित किया गया अथवा उसके घर एवं अन्य संपत्तियों को जला दिया गया किन्तु प्राइम टाइम शो द्वारा किये गए अनुसन्धान में पता चला कि ऐसा करने वाले लोग शायद रोबोट थे जिनका कोई धर्म पता नहीं चल पाया, इसलिए मजबूरन उन प्रताडनाओं पर कोई शो नहीं किया जा सका, किन्तु अखलाक़ का धर्म और जुनैद का धर्म देश के सभी मीडिया चनेल्स को पता चल गया था.
मालदा में कमलेश तिवारी को अरेस्ट किया गया किन्तु लाखों की उस भीड़ ने जिसने हजारों मासूमों के घर को जला कर राख कर दिया, उन्हें बेघर कर दिया तथा कश्मीरी पंडितों के भाँती उन्हें अपने ही भूमि से बेदखल कर दिया, उसपर कोई एक्शन नहीं, कोई सिनाख्त नहीं. कालिचक में मासूमों की रक्षा करने गयी पुलिस अपने जान की रक्षा नहीं कर सकी,पुलिस के गाड़ियों को जलाया गया किन्तु किसी अधार्मिक प्रोग्रेसिव व्यक्ति की गिरफ़्तारी नहीं हुई.
22 साल के एक युवा RSS कार्यकर्ता गोपाल तिवारी को गोली लगी मालदा में, जान बच गयी किन्तु किसी मीडिया चेनल को कोई फ़िक्र नहीं, क्योंकि वो तो एक हिन्दू था, हिन्दुओं को गोली मारना साम्प्रादायिक थोड़ी ना है इस देश में, साम्प्रादायिक तो बस जुनैद का मौत है, अयूब पंडित और फ़याज़ का मौत भी सम्प्रादयिक नहीं है.
बीरभूम जिला के एक गाँव में ममता दीदी के आलाकमान ने लोगों को दुर्गा पूजा नहीं मनाने का आदेश दिया क्योंकि गाँव में 25 परिवार ऐसे थे जिन्हें दुर्गा पूजा में होने वाला शोरगुल पसंद नहीं था, ऐसे प्रोग्रेसिव परिवार का मजहब भी प्राइम टाइम शो वालों को पता नहीं चल सका जिनके वजह से अनंत काल से दुर्गा पूजा मानाने की चली आ रही परंपरा पर अंकुश लगा दिया गया.
धौलागढ़, कालीचक, मालदा, बीरभूम और अब बदुरिया आखिर कब तक देश का बहुसंख्यक समाज चुपचाप इस प्रताड़ना को सहता रहेगा? आखिर कब तक अपने ही देश में उसे बहुसंख्यक होने की सजा मिलती रहेगी? इनके पीड़ा, कष्ट वेदना पर ना तो कोई प्राइम टाइम शो किया जाएगा और ना ही Notinmyname जैसा फर्जी प्रोटेस्ट और ना ही शबनम हाशमी जैसी कोई ढोंगी अवसरवादी अपना अवार्ड ही वापस करेगा.
दंगों में प्रतडित किसी ख़ास धर्म के लोग नहीं होते हैं, इंसान मरता है, इंसान पीडित होता है, जबतक इस देश में मरने वालों को मुस्लिम और मारने वालों को हिन्दू के रूप में प्राइम टाइम एंकर्स और ममता लालू जैसे लोग देखते रहेंगे तबतक मानवता शर्मसार होती रहेगी. इन मीडिया चेनल्स के सेलेक्टिव रिपोर्टिंग के वजह से देश के भाईचारा पर कुठाराघात हो रहा है, ऐसे मीडिया चेनल्स जो अयूब और फयाज के मौत से कम चिंतित और जुनैद के मौत से अधिक चिंतित हैं उन मीडिया चेनल्स को अविलम्ब बंद कर देने की जरुरत है. इसी से देश में समन्वयता तथा सौहार्द स्थापित हो सकेगा.
भास्कर ज्योति 
रिसर्च स्कॉलर, जेएनयू

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