● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा और बीएनएनवी(कॉमर्स कॉलेज) के उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में इंटरनेशनल रिसर्च स्कॉलर सेमिनार का शुभारंभ शनिवार को विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में हुआ। "ज्ञान के अन्यान्य क्षेत्रों से साहित्य का संबंध" विषय पर आयोजित अंतर्रष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कुलपति डॉ आर के पी रमण ने किया।
इस अवसर पर कुलपति ने कहा कि साहित्य को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक और शीधार्थियों को ईमानदारी के साथ काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ने साहित्यिक चोरी को रोकने के लिए कारगर कदम उठाया है। शोधार्थी को नो प्लैग्रिज्म सर्टिफिकेट लेना जरूरी होगा।
सेमिनार में प्रतिकुलपति डॉ. आभा सिंह ने साहित्य और दर्शन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दर्शन के अंतर्गत साहित्य को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साहित्य के विभिन्न आयाम होते हैं। जिसमें भावनात्मक और सृजनात्मक आयाम को बढ़ाने की जरूरत है। पीवीसी ने कहा कि सृजनात्मकता से वैज्ञानिकता आती है। जबकि भावनात्मकता से साहित्य को बढ़ावा मिलता है। शोधार्थी सृजनात्मकता भावनात्मकता को साथ लेकर बढ़े जिससे अच्छे साहित्य का उत्थान होगा।
सेमिनार में बीज वक्तव्य अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार मल्लिक ने कहा कि साहित्य समाज का आइना होता है। साहित्य से ही समाज की रचना होती है। जिससे स्वस्थ समाज की रचना हो सकती है।
इससे पहले प्रांगण रंगमंच के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार परमार के निर्देशन और आशीष सत्यार्थी के सह निर्देशन में लोकप्रिय व चर्चित गायिका नेहा यादव ने कुलगीत और स्वागत गान की प्रस्तुति दी। इस दौरान तबले पर लोकप्रिय वादक विनोद कुमार केसरी ने संगत किया।
सेमिनार की अध्यक्षता मानविकी संकाय की अध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा ने साहित्य के विभिन्न आयामों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि मानव सृजन और समाज के सृजन में साहित्य की महत्व भूमिका होती है। इसके बगैर भाषा ही नहीं बल्कि हम सभी अपूर्ण हैं। सभ्य समाज की रचना के लिए साहित्य को बढ़ावा देना जरूरी है।
उर्दू विभाग के एचओडी डा अमानुल्लाह खान ने स्वागत भाषण दिया।
साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ.एम.आई. रहमान ने कहा कि भाषा और साहित्य में अंतर होता है। भाषा जन्मजात होती है। जबकि साहित्य के द्वारा मानव में शिष्टता आती है। उन्होंने कहा कि उर्दू साहित्य का इतिहास नया हैं लेकिन कम समय में सभी ज्ञानों को प्रकाशित किया है। उन्होंने कहा कि जो भी शोधार्थी मनोविज्ञान का अध्ययन नहीं करते हैं उनकी साहित्य में कमी रह जाती है।
बीएचयू, वाराणसी के प्रो. ऋषि कुमार शर्मा ने उर्दू भाषा को शालीन भाषा बताया। उन्होंने कहा की साहित्य दिलों को जोड़ती है। इसके द्वारा जाति, नस्ल, धर्म का भेदभाव नहीं करता है।
बीएनएमवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ.नवीन कुमार सिंह ने साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का स्वागत किया।
आईक्यूएसी के निदेशक डॉ. नरेश कुमार ने साहित्य की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इस तरह के सेमिनार से नैक(NAAC) मूल्यांकन में मदद मिलने की बात कही। सेमिनार के आयोजन सचिव डॉ. निजामुद्दीन अहमद ने सेमिनार के औचित्य की चर्चा करते हुए सबों का स्वागत किया।
मंच संचालन डॉ. अबुल फजल ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन बज्मे सदफ के निदेशक डॉ सफदल इमाम कदमी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
मौके पर डॉ शेफालिका शेखर, डॉ. एहेशान, डॉ सहरेया, मो. वसीमउद्दीन उर्फ नन्हें, शाहनवाज आलम, साद कमाल, तस्लीमुद्दीन, शाहिद, अंजुम, सफकत खानम, परहत नाज, बली, यास्मीन रसीदी, समीमा बानो, डॉ अरुण कुमार, डॉ अरविंद कुमार, डॉ विवेक प्रकाश सिंह, डा शंभू राय, डॉ एहतातेशाम आलम सहित अन्य मौजूद रहे।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें