● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: बिहार दर्शन परिषद्' की स्थापना संत-दार्शनिक प्रो. धीरेन्द्र मोहन दत्त एवं अन्य
मनीषियों के प्रयासों से 1949 ई. में हुई। यह तब से लेकर आज तक निरंतर अपने उद्देश्यों एवं
लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर है और समाज एवं राष्ट्र को एक नई दिशा देने में महती भूमिका निभा रहा है।
उक्त बातें पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष सह दार्शनिक अनुगूंज के संपादक प्रो.आई.एन. सिन्हा ने कही।
वे मंगलवार को 'दर्शन परिषद्, बिहार : कल, आज और कल' के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज
दार्शनिक जगत तत्व-मीमांसा एवं ज्ञान-मीमांसा से आगे आगे बढ़कर सामाजिक, राजनीतिक एवं
पर्यावरणीय दर्शन की ओर बढ़ रहा है और खासकर नई पीढ़ी का झुकाव इसी ओर है। यह पुस्तक इतिहास एवं दर्शन के क्षेत्र में आए बदलावों को
केंद्र में रखकर प्रकाशित की गई है।
उन्होंने कहा कि परिषद् ने बिहार में दर्शनशास्त्र को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभाई है। हम अपनी इस विरासत के संरक्षण एंव संवर्द्धन के प्रति सचेत रहेंगे,
तो ‘परिषद्’ अपनी अधिस्थापना के उद्देश्यों को अर्थवत्ता प्रदान करेगा। यह आगे बढ़ता
रहेगा- ‘गोल्डेन से प्लेटिनम’ और ‘प्लेटीनम से डायमंड' की ओर बढ़ेगा।
अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह ने कहा कि परिषद्'अपने गौरवशाली अतीत (कल) से प्रेरणा लेते हुए वर्तमान (आज) में अपने आयामों को विस्तृत करते हुए क्रियाशील इ और अपने उज्ज्वल भविष्य (कल) की ओर अग्रसर है। तमाम उतार-चढा़व के बीच 'परिषद्' ने अपनी स्थापना के गौरवशाली 73 वर्ष पूरे कर लिए हैं और इसकी स्थापना का अमृत महोत्सव हमारे सामने है। ऐसे में परिषद् की विकास-यात्रा के विभिन्न आयामों को संकलित कर 'दर्शन परिषद्, बिहार : कल, आज और कल' नामक ग्रंथ का प्रकाशन एक अत्यंत ही सराहनीय कदम है।
प्रधान संपादक संपादक डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि परिषद् की स्थापना एवं विकास में अनेकों मनिषयों का योगदान है।क्ष1949 में स्थापित 'परिषद्' अपने गौरवशाली अतीत (कल) से प्रेरणा लेकर वर्तमान (आज) में अपने आयामों को विस्तृत कर रहे हैं और अपने उज्ज्वल भविष्य (कल) की ओर अग्रसर है। यह पुस्तक उसी की एक कड़ी है। इसमें इसकी गौरवशाली यात्रा के विभिन्न आयामों को संकलित एवं संयोजित किया गया है।
पुस्तक के संकलनकर्ता सह लेखक टीपी कॉलेज, मधेपुरा के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने निभाई है।
डॉ. शेखर ने बताया कि यह 'पुस्तक' 'परिषद्' के संस्थापक महामना प्रोफेसर धीरेन्द्र मोहन दत्त को समर्पित की गई है। इसमें सुप्रसिद्ध दार्शनिक प्रो. (डॉ.) हरिमोहन झा, प्रो. (डॉ.) अनिरुद्ध झा, प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार वर्मा, प्रो. नित्यानंद मिश्र, प्रो. (डॉ.) शत्रुध्न झा, प्रो. (डॉ.) संजीवन प्रसाद, प्रो. (डॉ.) प्रभु नारायण मंडल एवंप्रो. (डॉ.) बी. एन. ओझा के नाम शामिल का पुण्य स्मरण किया गया है। पुस्तक के लिए पद्मश्री प्रो. (डॉ.) रामजी सिंह, प्रो. (डॉ.) सोहनराज तातेड़, प्रो. (डॉ.) सभाजीत मिश्र, प्रो. (डॉ.) इंद्र देव नारायण सिन्हा, प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा, प्रो. (डॉ.) राजकुमारी सिन्हा, प्रो. (डॉ.) जटाशंकर एवं प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ है।।
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