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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

BNMU कैम्पस: गाँधी को अपनाना हमारी मजबूरी- डॉ. सुधांशु शेखर...

● Sarang Tanay@Madhepura.
मधेपुरा/बिहार: आज पूरी दुनिया बम एवं बारूद की ढेर पर खड़ी है और रिमोट का एक बटन दबाने मात्रा से पूरी सभ्यता के मिट्टी में मिलने की आशंका पैदा हो गई है। साथ ही बाढ़-सुखाड़, भूकंप, सुनामी, एसीड- रेन, ग्लोबल-वार्मिंग, ग्लोबल-कूलिंग और ओजोन परत के क्षरण का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इधर, एक कोराना वायरस ने दुनिया को दहशत में ला खड़ा किया है।
उक्त बातें बीएनएमयू, मधेपुरा के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर ने कही। वे सीएस पूजा शकुंतला शुक्ला के "फेसबुक पेज" पर "समकालीन संदर्भों में गांधी" विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।
 उन्होंने कहा कि आधुनिक सभ्यता विभिन्न अंतर्विरोधों एवं अवरोधों में फँस गई है। इसका तथाकथित विकास-अभियान, वास्तव में मानव एवं मानवता के लिए महाविनाश का आख्यान बनने वाला है। इसके पास बढ़ती बेरोजगारी, गैर-बराबरी एवं महामारी को रोकने, आतंकवाद, आणविक हथियार एवं पर्यावरण-असंतुलन से बचने का कोई उपाय नहीं है।
उन्होंने कहा कि आज कोरोना काल में आधुनिक सभ्यता के विकल्प की तलाश हो रही है। इस तलाश का हर रास्ता जहाँ आकर अर्थवान होता है, वह है- ‘गाँधी’। साफ-साफ कहें, तो ‘गाँधी’ में ही कोरोना सहित आधुनिक सभ्यता के सभी संकटों का सबसे बेहतर एवं कारगर समाधान मौजूद है।
उन्होंने कहा कि ‘गाँधी’ को जानना, समझना एवं अपनाना आज हमारी मजबूरी हो गई है।
 सवाल चाहे धर्म, राजनीति एवं शिक्षा का हो अथवा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं विकास का या कोरोना संक्रमण का सभी का जवाब "गाँधी-दर्शन" में ढूँढा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण महज स्वास्थ्य या अर्थ व्यवस्था का संकट नहीं है। यह जीवन-दर्शन एवं सभ्यता- संस्कृति का संकट है। यह विकास नीति एवं जीवन मूल्य से जुड़ा संकट है। 
उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण से सीख एवं सबक लेने की जरूरत है। हमें संकट का उपचार तो करना ही चाहिए और साथ ही उसका स्थाई निदान भी ढूंढना चाहिए। हम भोगवादी आधुनिक सभ्यता-संस्कृति और भौतिक विकास की होड़ को छोड़ें। अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति, प्रकृति-पर्यावरण एवं गांधी की शरण में जाएं। हम संयम, सादगी एवं सुचिता की भारतीय परंपरा को अपनाएं।।।

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