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सोमवार, 27 जुलाई 2020

मधेपुरा: भारतीय रेलवे निजीकरण की प्रासंगिकता में कितना होगा उपयोगी,जानें आम जनता का दर्द...

मधेपुरा/बिहार: ब्रिटिश भारत में रेल की शुरुआत प्राइवेट कम्पनी के द्वारा 19 सदी के मध्य में हुआ था। स्वतंत्र भारत में 1950 में रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार निजीकरण की ओर बढ चली है। भारतीय रेलवे, भारत की राष्ट्रीय रेल प्रणाली है जिसे रेल मंत्रालय,भारत सरकार संचालित करता है। भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण लोक कल्याण के उदेश्य से किया गया था और इसी उदेश्य से लाभ-हानि को दरकिनार कर के इसका संचालन किया गया। भारतीय रेलवे कुल 67,415 किलोमीटर की लम्बाई के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। 
बहुत समय से रेल के निजीकरण की बात चल रही थी लेकिन रेल संचालन के मूल उदेश्य लोक कल्याण को देखते हुए पूर्व के केंद्र सरकार ने इसके निजीकरण को सही नहीं माना। लेकिन भारतीय रेल का उदेश्य सरकार बदलने से परिवर्तित हुआ है। नरेंद्र मोदी की दो चुनाव में भारी बहुमत से जीत ने भारत में लोक कल्याण की अवधारणा को परिवर्तित किया है। वर्तमान एनडीए की सरकार इस बहुमत की आड़ में कई फ़ैसले ऐसे ले चुकी है जिसका नकारात्मक प्रभाव आम लोगों पर पड़ रहा  है। भारतीय रेल के निजीकरण को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भारतीय रेल के मूलभूत उदेश्य लोक कल्याण की अवधारणा को ख़त्म करते हुए केंद्र सरकार रेलवे में लाभ-हानि को गोदी मीडिया एवं अन्य माध्यमों से प्रचारित करवा रहा है।
● आम लोगों के संदर्भ में भारतीय रेलवे के निजीकरण की प्रासंगिकता :
भारतीय रेलवे राष्ट्रीय सम्पदा है और आम जनता के लिए जीवन रेखा है। भारतीय रेलवे के निजीकरण से सबसे अधिक नुक़सान आम जनता को होने की प्रबल संभावना है और ऐसा जहाँ अभी निजीकरण हुआ है वहाँ हो भी रहा है। भारतीय रेलवे ने कम किराया पर आम जनता को परिवहन का सस्ता साधन अभी तक उपलब्ध कराया है। 
भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर प्राइवेट ट्रेन चलाने के लिए निजी कम्पनियों को आमंत्रित किया है। भारतीय रेलवे 30 हज़ार करोड़ का निवेश का अनुमान लगा रहा है। भारतीय रेलवे में निजी क्षेत्र के निवेश का यह पहला अवसर है। लेकिन रेल मंत्रालय के प्रस्ताव को देखा जाए तो समझ में आ जाता है की इस प्रस्ताव में बहुत विसंगतियाँ है, उदाहरणस्वरूप- रेल मंत्रालय ट्रेन ड्राइवर, ट्रेन गार्ड, रेल पटरियाँ, रेलवे स्टेशन, रेलवे सुरक्षा बल इत्यादि निजी क्षेत्र को उपलब्ध कराएगा। इससे ऐसा प्रतीत होता है की सिर्फ़ रेलवे ट्रेन का नामकरण निजी क्षेत्र का होगा जबकि रेलवे इन्फ़्रस्ट्रक्चर सरकार का। 
पहली निजी ट्रेन "तेजस" नई दिल्ली - लखनऊ के बीच चलाई गई थी किराया वर्तमान भारतीय रेलवे से 3 गुना अधिक किराया। यही माडल देश में लागू किया गया तो आम जनता का ट्रेन से सफ़र करना मुश्किल हो जाएगा। वर्तमान में रेल मंत्रालय ट्रेन के किराए का 43% सब्सिडी यात्रियों को देता है। निजी क्षेत्र के आने से सब्सिडी बंद हो जाएगा यानी कि ग़रीब जनता का ट्रेन से सफ़र करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। आम जनता पर नकारात्मक प्रभाव का मतलब है की रेलवे के लोक कल्याण के उदेश्य का समाप्त हो जाना। केंद्र सरकार प्रचारित करवा रही है की रेलवे निजी क्षेत्र में आएगा तो सेवा अच्छी मिलेगी लेकिन वास्तविकता  इससे  कोसों /बहुत दूर है उदाहरणस्वरूप केटरिंग रेलवे की निजी कम्पनी आईआरसीटीसी के पास है लेकिन केटरिंग सेवा से रेल यात्री को निराशा मिली है। दूसरी ओर रेलवे से आमदनी को देश के विकास कार्यों में लगाया जाता है लेकिन निजी क्षेत्र के आने से सारा आमदनी 2-3 उद्योग घराने को मिलेगा जिसका जनहित से कोई सरोकार नहीं है।
 दरअसल केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव का उदेश्य देश में बड़े उद्योगपति घराने को फ़ायदा पहुँचाना है। यह एक तरह का  केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित लूट है।।
                                                          --- नैनिका,
                                                             शोधार्थी,
                                           राजनीति विज्ञान विभाग,                  भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा(बिहार)

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