बीएनएमयू को बदनाम करने के लिये कहीं ना कहीं हम सभी जिम्मेवार हैं । आप सोच रहे होंगे कि ये कैसी बात कर रहा हूं मैं!
जी हां! हम सभी जिम्मेवार हैं। क्यूंकि हाल में कुलसचिव बने कर्नल नीरज कुमार, प्रतिकुलपति फारूक अली और ग्रीन रूम से इस ड्रामे को निर्देशित करने वाले निर्देशक सह माननीय कुलपति का घिनौना कुकृत्य सामने आया है जिसमें छात्रों के हक की आवाज उठाने वाले निहत्थे छात्र नेताओं पर लाठी बरसाया गया। आधा दर्जन छात्रों पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। इनकी गलती ये थी कि इन्होंने विवि० द्वारा विभिन्न पदों पर बगैर विज्ञापन निकाले बहाली लेने का शांतिपूर्ण विरोध किया था।
इस घटना के बाद कर्नल कुलसचिव के द्वारा पीवीसी पाइप की खरीदारी की गई और फरमान जारी किया गया कि अब हर कर्मचारी अपने पास ये पीवीसी डंडा रखेगा और हक की बात करने वाले छात्रों पर ताबरतोर लाठियां बरसायेगा। ऐसा नहीं करने वाले कर्मचारी पर भी कार्रवायी की जायेगी। साफ तौर पर ये हाल दर्शा रहा है कि विवि प्रसाशन चाहती है उनकी मनमानी में कोइ रूकावट ना बने।
ये वही छात्र हैं जो हजारों छात्रों के अधिकार के लिये सड़कों पर उतरते हैं। भूखे प्यासे अनशन करते हैं। लाठी खाते हैं । मुकदमा में बेवजह फंसाये जाते हैं।
पता है क्यूं? क्यूंकि वो पुत्रवत व्यवहार रखते हुए अपना अधिकार मांगते हैं। लेकिन इनकी आवाज को दबाने के लिये वीसी और प्रोवीसी के इशारे पर ऐसे कुलसचिव की बहाली की गई है जिससे वो अपने मंसूबे में कामयाब हो सके।
शायद ये कुलसचिव यहां आने से पहले मधेपुरा की मिट्टी से वाकिफ नहीं हो सके थे । खैर वो निश्चिंत रहें,यहां के युवा बहुत जल्द उन्हें मधेपुरा से अवगत कराएंगे। वो लाठी की भाषा वहां सिखाने आए हैं जहां से इस देश की लाठी मजबूत होती रही है।
दुख की बात है कि इस घटना के बाद मधेपुरा के समाजिक बुद्धिजीवियों और जनप्रतिनिधियों का मौन रहना उनकी मानसिकता को साफ दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि छात्रों की आवाज अनाथ हैं। ये लोग सिर्फ और सिर्फ युवाओं को उपयोग की वस्तु समझती है,जिससे युवाओं को सीख लेनी चाहिये। छात्रों को खुद की लड़ाई खुद लड़नी होगी। अहिंसा के रास्ते अगर आपको अपने अधिकार से वंचित किया जाने लगा हो तो स्वतः ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दें। अन्यथा आपको भांप कर वो जुल्मी लोग अत्याचार की हर सीमा को लांघ देंगे।
"हम सब इसलिये दोषी हैं क्यूंकि हम मौन हैं" हमें विरोध करना होगा क्यूंकि हम जिंदा हैं।
राममनोहर लोहिया ने कहा था "जब छात्र 'राजनीति' नहीं करते तो वो सरकारी राजनीति को बेलगाम चलने में मदद करते हैं। जो हमारे समाज और देश दोनों के लिये घातक है"। इस सिद्धांत पर इन अत्याचारियों को मुंहतोर जवाब देना ही वक्त की मांग है । जिसके लिये सभी दलों को सामुहिक रूप से प्रतिकार करना चाहिये।
~ गौरव प्रसाद
साहित्यकार, लेखक
जी हां! हम सभी जिम्मेवार हैं। क्यूंकि हाल में कुलसचिव बने कर्नल नीरज कुमार, प्रतिकुलपति फारूक अली और ग्रीन रूम से इस ड्रामे को निर्देशित करने वाले निर्देशक सह माननीय कुलपति का घिनौना कुकृत्य सामने आया है जिसमें छात्रों के हक की आवाज उठाने वाले निहत्थे छात्र नेताओं पर लाठी बरसाया गया। आधा दर्जन छात्रों पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। इनकी गलती ये थी कि इन्होंने विवि० द्वारा विभिन्न पदों पर बगैर विज्ञापन निकाले बहाली लेने का शांतिपूर्ण विरोध किया था।
इस घटना के बाद कर्नल कुलसचिव के द्वारा पीवीसी पाइप की खरीदारी की गई और फरमान जारी किया गया कि अब हर कर्मचारी अपने पास ये पीवीसी डंडा रखेगा और हक की बात करने वाले छात्रों पर ताबरतोर लाठियां बरसायेगा। ऐसा नहीं करने वाले कर्मचारी पर भी कार्रवायी की जायेगी। साफ तौर पर ये हाल दर्शा रहा है कि विवि प्रसाशन चाहती है उनकी मनमानी में कोइ रूकावट ना बने।
ये वही छात्र हैं जो हजारों छात्रों के अधिकार के लिये सड़कों पर उतरते हैं। भूखे प्यासे अनशन करते हैं। लाठी खाते हैं । मुकदमा में बेवजह फंसाये जाते हैं।
पता है क्यूं? क्यूंकि वो पुत्रवत व्यवहार रखते हुए अपना अधिकार मांगते हैं। लेकिन इनकी आवाज को दबाने के लिये वीसी और प्रोवीसी के इशारे पर ऐसे कुलसचिव की बहाली की गई है जिससे वो अपने मंसूबे में कामयाब हो सके।
शायद ये कुलसचिव यहां आने से पहले मधेपुरा की मिट्टी से वाकिफ नहीं हो सके थे । खैर वो निश्चिंत रहें,यहां के युवा बहुत जल्द उन्हें मधेपुरा से अवगत कराएंगे। वो लाठी की भाषा वहां सिखाने आए हैं जहां से इस देश की लाठी मजबूत होती रही है।
दुख की बात है कि इस घटना के बाद मधेपुरा के समाजिक बुद्धिजीवियों और जनप्रतिनिधियों का मौन रहना उनकी मानसिकता को साफ दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि छात्रों की आवाज अनाथ हैं। ये लोग सिर्फ और सिर्फ युवाओं को उपयोग की वस्तु समझती है,जिससे युवाओं को सीख लेनी चाहिये। छात्रों को खुद की लड़ाई खुद लड़नी होगी। अहिंसा के रास्ते अगर आपको अपने अधिकार से वंचित किया जाने लगा हो तो स्वतः ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दें। अन्यथा आपको भांप कर वो जुल्मी लोग अत्याचार की हर सीमा को लांघ देंगे।
"हम सब इसलिये दोषी हैं क्यूंकि हम मौन हैं" हमें विरोध करना होगा क्यूंकि हम जिंदा हैं।
राममनोहर लोहिया ने कहा था "जब छात्र 'राजनीति' नहीं करते तो वो सरकारी राजनीति को बेलगाम चलने में मदद करते हैं। जो हमारे समाज और देश दोनों के लिये घातक है"। इस सिद्धांत पर इन अत्याचारियों को मुंहतोर जवाब देना ही वक्त की मांग है । जिसके लिये सभी दलों को सामुहिक रूप से प्रतिकार करना चाहिये।
~ गौरव प्रसाद
साहित्यकार, लेखक
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