पल्लवी राय, छात्रा, पीजी डिपार्टमेंट, बीएनएमयू
छुपा लो माँ मुझे अपनी आँचल की छाँव मे,
कि इसके सिवा मैं कहीं महफूज हीं नही ..😢

जी हां कुछ ऐसा ही है अब शायद इस जहां में और खासकर अपने देश भारत में ।
यकीन नहीं होता ये वही देश है जहां नवरात्रि में लड़कियों को देवी मानकर उनकी पूजा की जाती है और दूसरी तरफ उनके साथ कई तरह के अत्याचार किए जाते हैं । कभी भ्रूण मे ही मार दी जाती हैं, तो कभी दुष्कर्म का शिकार बनाया जाता है और कभी तो उनको दहेज की आग मे झोंक दिया जाता है ।
शास्त्रों में कहा गया है ,"जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है" पर अब इस दुनिया में देवता क्यों आएंगे भला क्योंकि यहां तो अब न इंसान बचे न इंसानियत , हर तरफ सिर्फ इंसान की शक्ल मे जानवर नजर आने लगे हैं जो न तो अपने परिवार और समाज के लोगों को बख्शते हैं , ना छोटी बच्चियों को ।
एक समय था हमारी सभ्यता और संस्कृति को सारी दुनिया सलाम करती थी और आज हालात यह हैं कि भारत में स्त्रियों बुरी की स्थिति पर पूरे विश्व की नजर है ।इससे शर्मिंदगी की बात क्या होगी की जहां एक तरफ हम कल्पना चावला, सायना नेहवाल,हिमा दास की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं तो वही दूसरी ओर रोज दुष्कर्म की घटनाओं से अखबार के पन्ने भरे होते हैं।
कहने को तो हमारे देश की आधी आबादी स्त्रियां हैं पर आधी आबादी जिस जिल्लत से गुजर रही है,और जिस तरह से हमारे देश में नैतिकता का पतन होता जा रहा है ये अत्यंत सोचनीय है।
हाल की हीं घटना हमारे बिहार के मुजफ्फरपुर की है।
किस तरह से 40 से ज्यादा लड़कियों के साथ अत्याचार हो रहा था वह भी एक सरकारी बालिका गृह में , इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है ।और ये अकेला नही ऐसे कई जगहों पर ऐसे धंधे फल फूल रहे हैं इसके जाँच की आवश्यकता है।
इस तरह का एक बहुत ही ताजा मामला हमारे मधेपुरा शहर का जहां गुरु शिष्य के रिश्ते को तार तार करते हुए शिक्षक ने एक 13 साल की छोटी सी बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और किसी को बताने पर उसके परिवार को हानि पहुंचाने की धमकी तक दे डाली ,कैसे निडर हैं ये लोग जिन्हें न समाज का डर है न कानून का।अगर इस तरह की घटनाएं हमारे समाज में होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब मजबूरन लड़कियों को घर में ही कैद कर दिया जाएगा क्योंकि कोई ऐसी जगह ही नहीं बची जहां भेजकर अब मां बाप सुकून की सांस ले सकेंगे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो खूब लगता है पर इन दरिंदों से बेटीयों को बचाने की कोई पहल नही की जा रही।
ऐसे मे हार तो मान नही सकते, थोड़ी समझदारी अभिभावकों को भी निभानी होगी। किसी भी स्कूल या ट्यूशन सेंटर में भेजने से पहले वहां के शिक्षकों के चरित्र की जानकारी अवश्य ले लें और अपनी बेटियों को भी इस तरह सशक्त बनाए कि वह ऐसे अत्याचारों का प्रतिकार कर सके,और ऐसी सभी बुराइयों डटकर सामना करे।
कुछ मेरी ही लिखी पंक्तियाँ प्रस्तुत है हमारी बेटियों बहनों के लिए ,
अग्नि हूँ मैं,
ज्वाला हूँ मैं,
काली हूँ मैं,
नारी हूँ मैं,
चलूंगी मैं निरंतर,
अपने कर्तव्य पथ पर,
बाधा हो चाहे बड़ी,
डटकर रहुं मैं खड़ी,
राह मत रोकना,
मत मुझे टोकना,
मैं क्यों रूकुँ,
मैं क्यों झुकुँ,
ये जिंदगी है मेरी,
जीना कैसे है इसे,
ये मर्जी है मेरी,
रुकूँगी मैं नही,
झुकुंगी मैं नही,
चलना हो मुझे,
काँटों पर ही सही,
अनजान हूँ नही,
नादान हूँ नही,
खुली हवाओं मे,
साँस लूंगी मैं,
"बेटी" हूँ मैं,
अभिशाप हूँ नही।।
कि इसके सिवा मैं कहीं महफूज हीं नही ..😢

जी हां कुछ ऐसा ही है अब शायद इस जहां में और खासकर अपने देश भारत में ।
यकीन नहीं होता ये वही देश है जहां नवरात्रि में लड़कियों को देवी मानकर उनकी पूजा की जाती है और दूसरी तरफ उनके साथ कई तरह के अत्याचार किए जाते हैं । कभी भ्रूण मे ही मार दी जाती हैं, तो कभी दुष्कर्म का शिकार बनाया जाता है और कभी तो उनको दहेज की आग मे झोंक दिया जाता है ।
शास्त्रों में कहा गया है ,"जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है" पर अब इस दुनिया में देवता क्यों आएंगे भला क्योंकि यहां तो अब न इंसान बचे न इंसानियत , हर तरफ सिर्फ इंसान की शक्ल मे जानवर नजर आने लगे हैं जो न तो अपने परिवार और समाज के लोगों को बख्शते हैं , ना छोटी बच्चियों को ।
एक समय था हमारी सभ्यता और संस्कृति को सारी दुनिया सलाम करती थी और आज हालात यह हैं कि भारत में स्त्रियों बुरी की स्थिति पर पूरे विश्व की नजर है ।इससे शर्मिंदगी की बात क्या होगी की जहां एक तरफ हम कल्पना चावला, सायना नेहवाल,हिमा दास की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं तो वही दूसरी ओर रोज दुष्कर्म की घटनाओं से अखबार के पन्ने भरे होते हैं।
कहने को तो हमारे देश की आधी आबादी स्त्रियां हैं पर आधी आबादी जिस जिल्लत से गुजर रही है,और जिस तरह से हमारे देश में नैतिकता का पतन होता जा रहा है ये अत्यंत सोचनीय है।
हाल की हीं घटना हमारे बिहार के मुजफ्फरपुर की है।
किस तरह से 40 से ज्यादा लड़कियों के साथ अत्याचार हो रहा था वह भी एक सरकारी बालिका गृह में , इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है ।और ये अकेला नही ऐसे कई जगहों पर ऐसे धंधे फल फूल रहे हैं इसके जाँच की आवश्यकता है।
इस तरह का एक बहुत ही ताजा मामला हमारे मधेपुरा शहर का जहां गुरु शिष्य के रिश्ते को तार तार करते हुए शिक्षक ने एक 13 साल की छोटी सी बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और किसी को बताने पर उसके परिवार को हानि पहुंचाने की धमकी तक दे डाली ,कैसे निडर हैं ये लोग जिन्हें न समाज का डर है न कानून का।अगर इस तरह की घटनाएं हमारे समाज में होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब मजबूरन लड़कियों को घर में ही कैद कर दिया जाएगा क्योंकि कोई ऐसी जगह ही नहीं बची जहां भेजकर अब मां बाप सुकून की सांस ले सकेंगे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो खूब लगता है पर इन दरिंदों से बेटीयों को बचाने की कोई पहल नही की जा रही।
ऐसे मे हार तो मान नही सकते, थोड़ी समझदारी अभिभावकों को भी निभानी होगी। किसी भी स्कूल या ट्यूशन सेंटर में भेजने से पहले वहां के शिक्षकों के चरित्र की जानकारी अवश्य ले लें और अपनी बेटियों को भी इस तरह सशक्त बनाए कि वह ऐसे अत्याचारों का प्रतिकार कर सके,और ऐसी सभी बुराइयों डटकर सामना करे।
कुछ मेरी ही लिखी पंक्तियाँ प्रस्तुत है हमारी बेटियों बहनों के लिए ,
अग्नि हूँ मैं,
ज्वाला हूँ मैं,
काली हूँ मैं,
नारी हूँ मैं,
चलूंगी मैं निरंतर,
अपने कर्तव्य पथ पर,
बाधा हो चाहे बड़ी,
डटकर रहुं मैं खड़ी,
राह मत रोकना,
मत मुझे टोकना,
मैं क्यों रूकुँ,
मैं क्यों झुकुँ,
ये जिंदगी है मेरी,
जीना कैसे है इसे,
ये मर्जी है मेरी,
रुकूँगी मैं नही,
झुकुंगी मैं नही,
चलना हो मुझे,
काँटों पर ही सही,
अनजान हूँ नही,
नादान हूँ नही,
खुली हवाओं मे,
साँस लूंगी मैं,
"बेटी" हूँ मैं,
अभिशाप हूँ नही।।
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