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मंगलवार, 1 मई 2018

"परेशान आजकल" समाज मे बढ़ रही स्त्री के साथ अत्याचार पर प्रिया सिन्हा की बेहतरीन कविता..आप पढ़े

"परेशान आजकल"

मेरे सभी प्यारे दोस्तों कुछ एक दिनों से,
मैं तो हूँ बहुत ही परेशान आजकल;
इस कलयुग की रोज की घटनाओं को देख,
मैं हूँ  बिल्कुल और बेहद ही हैरान आजकल ।

आखिर क्यों कोई भी स्त्री सुरक्षित नहीं अपने ही मुल्क में ?
चाहे हो वो बूढ़ी,बच्ची या फिर जवान आजकल ?
आए दिन घटनाएं घट रही; उनकी इज्ज़त लुट रही,
कभी बीच चौराहे तो कभी सड़क सुनसान आजकल ।

जो इन सब घटनाओं से कुछ लड़कियाँ घबड़ा के घर बैठ जाएं,
तो कुछ हँसते उनपर और कहते-
वो देखो लड़की बैठी है घर बन बेकार नादान आजकल;
घर की चार दीवारियों में अब भी है वो घुट रही;
लायक ना होने के कारण उनकी शादियाँ हैं टूट रही;
घरवाले  भी अपने बहन-बेटियों को घर में ही रहने की सलाह देते,
वो कहते ऐसा खराब जमाना जान आजकल ।

लेकिन आज के इस भाग-दौड़  भरी जिंदगी में होती है,
एक तरफ खुद को लायक बनाने की होड़;
तो दूसरे तरफ होती है उनके ही हाथों में,
अपने परिवार और अपने इज्ज़त की डोर ।
तो अब आप सब ही बताओ के ऐसे कश्मकश में,
कोई लड़की कैसे करे खुद का कल्याण आजकल?
कैसे चलाए वो अपना परिवार,कैसे करें वो नाम अपना रौशन,
और कैसे बढ़ाए खुद का आत्म-सम्मान आजकल ?

इन सब के लिए हम अपराधियों को दण्डित तो कर देते हैं,
पर क्या इस शर्मनाक अपराधों के लिए,
अपराधियों को कड़ी सज़ा से दण्डित करना ही,
रह गया है एकमात्र समाधान आजकल ?
परन्‍तु मेरा सोचना ये है कि-
क्यों ना हम ऐसी स्थिति को आने ही ना दें,
जिससे के ना होना पड़े अपने ही बहन-बेटियों-बहुओं को,
बेवज़ह कुर्बान आजकल ।

और इन सब के लिए हम सभी लोगों को ही,
मिलकर ये संकल्प लेना होगा कि-
हम सभी भारतवासी करेंगे स्वच्छ-सुंदर भारत का निर्माण आजकल ;
जहाँ हर कोई स्वछंद होगा, हर कोई निडर हो चलेगा,
ना तो कोई किसी से डरेगा, और ना ही कोई किसी को डराएगा,
क्योंकि हम सभी लोगों के हाथों में ही तो है,
अपने देश के इज्ज़त की कमान आजकल ।




"प्रिया सिन्हा"
साहित्यकार, पूर्णियां

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